महापर्व छठ:
दिल्ली ,छठ महापर्व का उत्सव श्रद्धा और भक्तिपूर्ण तरीके से मनाया जा रहा है, और बुधवार को इसके दूसरे दिन खरना का आयोजन किया गया। इस दिन व्रति ने पूरे दिन का निर्जला व्रत रखकर, सायं पूजन करके रोटी और गुड़ की खीर का प्रसाद ग्रहण किया। इसके साथ ही, प्रसाद को अपने परिवार और पड़ोसियों में भी बांटा गया। यह महापर्व सूर्य देवता की उपासना और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने का प्रमुख अवसर होता है।
खरना की विशेषता:
खरना छठ महापर्व का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसे खासकर दूसरे दिन मनाया जाता है। इस दिन श्रद्धालु पूरे दिन उपवासी रहते हैं और संतान सुख, स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना के लिए सूर्य देवता की उपासना करते हैं। शाम को, व्रति रोटी, गुड़ और खीर का प्रसाद बनाते हैं और इसे पूजा के बाद ग्रहण करते हैं। यह प्रसाद परिवार और आसपास के लोगों में भी वितरित किया जाता है। इस दिन व्रति निर्जला व्रत रखते हैं, यानी बिना पानी के रहते हैं और अपनी तपस्या और बलिदान से सूर्य देवता का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
पर्व की शुरुआत:
छठ महापर्व की शुरुआत मंगलवार को ‘नहाय-खाय’ के साथ हुई। इस दिन व्रति नदियों और तालाबों में स्नान करके शुद्धता का संकल्प लेते हैं और शाकाहारी भोजन ग्रहण करते हैं। यह दिन शरीर और आत्मा की शुद्धि के रूप में मनाया जाता है। इसके बाद बुधवार को खरना किया गया, जो कि पूजा और तपस्या का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
अर्घ्य अर्पण:
आज, यानी गुरुवार को, श्रद्धालु डूबते सूर्य को अर्घ्य देंगे। सूर्य पूजा इस पर्व का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसमें व्रति सूर्य देवता के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं और उन्हें अर्घ्य अर्पित करते हैं। सूर्य देवता से सुख, समृद्धि और आरोग्य की प्रार्थना की जाती है। इसके बाद अगले दिन, यानी शुक्रवार को उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा, जो छठ पर्व की समाप्ति का प्रतीक होगा।
छठ महापर्व का महत्व:
छठ पर्व खासकर बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और नेपाल में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व सूर्य देवता की पूजा, उनके प्रति आभार व्यक्त करने और पर्यावरण की शुद्धि का पर्व होता है। इस दिन लोग नदी किनारे या जलाशयों में जाकर सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। यह पर्व परिवार में खुशहाली, सुख-समृद्धि और शांति की कामना के साथ मनाया जाता है।
इस प्रकार, छठ महापर्व केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि यह समाज में एकता, शुद्धता और भाईचारे का प्रतीक बनकर उभरता है, जिसमें लोग अपने परिवार और समाज के साथ मिलकर श्रद्धा और भक्ति के साथ पूजा करते हैं।