Wednesday, October 9, 2024

सिरसा डेरा प्रमुख राम रहीम ने फिर मांगी 20 दिन की पैरोल

सिरसा डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम ने एक बार फिर 20 दिन की पैरोल के लिए आवेदन किया है। राम रहीम, जो हत्या और बलात्कार के मामलों में दोषी ठहराए जाने के बाद रोहतक की सुनारिया जेल में सजा काट रहे हैं, ने इससे पहले भी कई बार पैरोल ली है। उनका पैरोल पर बाहर आना हर बार चर्चा और विवाद का विषय बनता रहा है, और इस बार भी उनका पैरोल आवेदन सार्वजनिक और राजनीतिक हलकों में काफी ध्यान खींच रहा है।

राम रहीम ने 20 दिन की पैरोल इसलिए मांगी है ताकि वह अपने अनुयायियों से मिल सकें और विभिन्न धार्मिक-सामाजिक कार्यक्रमों में भाग ले सकें। इससे पहले भी राम रहीम जब पैरोल पर बाहर आए थे, तो उन्होंने ऑनलाइन सत्संग और अपने अनुयायियों के साथ वर्चुअल बैठकें की थीं, जहां उन्होंने अपने प्रवचन और संदेश दिए। उनके समर्थकों के बीच राम रहीम की पैरोल को लेकर उत्साह है, लेकिन साथ ही यह मुद्दा राजनीतिक और कानूनी बहस का कारण बनता जा रहा है।

पैरोल का राजनीतिक प्रभाव: राम रहीम की पैरोल की मांग ऐसे समय में आई है जब हरियाणा में विधानसभा चुनाव नजदीक हैं। उनके अनुयायियों की संख्या बड़ी है, और उनका प्रभाव विशेषकर हरियाणा, पंजाब और राजस्थान के कुछ हिस्सों में देखा जाता है। उनके अनुयायी अक्सर एक ठोस वोट बैंक के रूप में माने जाते हैं, जो चुनावों में किसी भी पार्टी के लिए निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं। इस वजह से, कई राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि राम रहीम की पैरोल का सीधा प्रभाव चुनावी समीकरणों पर पड़ सकता है।

कई राजनीतिक दलों पर राम रहीम के प्रति नरम रुख अपनाने के आरोप लगते रहे हैं, खासकर चुनावी मौसम में। उनकी पैरोल को लेकर कुछ दलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा आलोचना भी की जाती है, जो यह सवाल उठाते हैं कि ऐसे गंभीर अपराधों में दोषी व्यक्ति को बार-बार पैरोल देना कानून व्यवस्था के साथ खिलवाड़ हो सकता है।

विरोध और समर्थन: राम रहीम की पैरोल पर आने की खबर से जहां उनके अनुयायियों के बीच उत्साह है, वहीं उनके विरोधियों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं में असंतोष भी है। महिला अधिकार संगठनों का कहना है कि बलात्कार और हत्या के मामलों में दोषी ठहराए गए व्यक्ति को बार-बार पैरोल देना न्याय प्रणाली में अविश्वास की भावना पैदा कर सकता है। साथ ही, यह सवाल भी उठता है कि क्या इस तरह की बार-बार पैरोल देना कानूनी दृष्टिकोण से उचित है या नहीं।

राम रहीम के खिलाफ दर्ज मामलों की गंभीरता को देखते हुए यह निर्णय काफी महत्वपूर्ण है। इससे पहले भी जब उन्हें पैरोल दी गई थी, तो कई विवाद खड़े हुए थे। राम रहीम की पैरोल को लेकर राज्य सरकार की भूमिका पर भी सवाल उठते हैं, क्योंकि वह एक बड़ा वोट बैंक माने जाते हैं।

सरकार और प्रशासन की भूमिका: अब प्रशासन और हरियाणा सरकार के सामने एक बार फिर यह चुनौती है कि राम रहीम की पैरोल याचिका पर क्या निर्णय लिया जाए। सरकार को यह तय करना होगा कि क्या वह चुनावों के करीब आते समय इस पैरोल को मंजूरी देती है या नहीं। विपक्षी दल पहले ही इस मुद्दे पर सरकार को घेरने की तैयारी में हैं, और इस बात पर जोर दे रहे हैं कि राम रहीम की पैरोल को राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।

इस बार की पैरोल याचिका का निर्णय राज्य के राजनीतिक और सामाजिक समीकरणों पर गहरा प्रभाव डाल सकता है। हालांकि, राम रहीम के समर्थकों के लिए यह खबर राहत भरी है, लेकिन यह देखना दिलचस्प होगा कि प्रशासन इस मामले में क्या रुख अपनाता है।

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