Sunday, September 15, 2024

हमारे स्वतंत्रता सेनानियों के सपनों का भारत: आज़ादी का 78वां साल

जब पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 15 अगस्त 1947 को लाल किले की प्राचीर से भारत की स्वतंत्रता की घोषणा की, तो यह दिन भारतीय इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज हो गया। ब्रिटिश शासन से मुक्ति के साथ ही भारत को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता मिली। यह केवल एक ऐतिहासिक घटना नहीं थी, बल्कि यह हमारे स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान की भी याद दिलाती है और हमें एकता और अखंडता की दिशा में प्रयास करने की प्रेरणा देती है।

हरियाणा और मेवात का योगदान

देश की स्वतंत्रता के संघर्ष में हर वर्ग और क्षेत्र के लोगों ने योगदान दिया। विशेष रूप से हरियाणा और मेवात ने इस लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हजारों शहीद हुए, जिन्होंने मुगलों और अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष किया। स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह, और मौलाना अबुल कलाम आजाद जैसे नेताओं ने अपने अपने दृष्टिकोण से संघर्ष किया। गांधीजी ने अहिंसा और सत्याग्रह के सिद्धांतों को अपनाया, जबकि क्रांतिकारी जैसे सुभाष चंद्र बोस और भगत सिंह ने सशस्त्र संघर्ष को प्रमुखता दी।

आज की चुनौतियाँ और सामाजिक न्याय

स्वतंत्रता दिवस पर हमें अपने देश की प्रगति और चुनौतियों की समीक्षा करनी चाहिए। 78 वर्षों बाद भी, स्वतंत्रता का सही अर्थ केवल राजनीतिक आज़ादी नहीं बल्कि सामाजिक और आर्थिक न्याय भी है। आज भी किसानों, गरीबों, मजदूरों, और युवाओं को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। संवैधानिक संस्थाएं भी कमजोर दिखाई देती हैं। स्वतंत्रता के दो प्रमुख स्तंभ, संविधान और लोकतंत्र, आज के समय में कमजोर नज़र आते हैं। हाल ही में किसानों पर हुए अत्याचार और सरकारी दमन ने इस चिंता को और बढ़ा दिया है।

सांप्रदायिक सद्भाव और एकता की चुनौतियाँ

बीते एक दशक में सांप्रदायिक सद्भाव और अनेकता में एकता की अवधारणा को गहरा आघात पहुँचा है। एक जाति को दूसरी जाति और एक धर्म को दूसरे धर्म के खिलाफ भड़काने की घटनाएं आज भी हो रही हैं। इस देश के बुजुर्गों ने जिस उद्देश्य और सपनों के लिए अपनी जान की बाजी लगाई थी, वो आज की सरकार की नीतियों से मेल नहीं खाती। आज़ादी के इस साल के अवसर पर सरकार को आत्ममंथन करना चाहिए कि जिन लोगों ने धर्म, जाति, रंग, क्षेत्र से ऊपर उठकर देश के लिए शहादत दी, उन्हें आज क्यों बांटा जा रहा है।

नागरिकों की भूमिका और भविष्य की दिशा

देश के नागरिकों को इस बात पर गंभीरता से विचार करना चाहिए कि वे लोकतंत्र में अपने अधिकारों का सही उपयोग करके अपने शहीद सेनानियों के सपनों का भारत कैसे बना सकते हैं। एकता, अखंडता, और सामाजिक न्याय को प्राथमिकता देते हुए हमें एक समृद्ध भारत की दिशा में काम करना चाहिए। आपसी प्रेम, सहयोग, और सद्भाव के साथ ही हम एक मजबूत और समृद्ध भारत की नींव रख सकते हैं।

**निष्कर्ष**

स्वतंत्रता का 78वां साल हमें एक नई दिशा और नई सोच के साथ अपने देश की सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों का सामना करने की प्रेरणा देता है। हमें अपने शहीदों के बलिदानों को याद करते हुए, उनके सपनों का भारत बनाना होगा—एक ऐसा भारत जो स्वतंत्रता, एकता, और सामाजिक न्याय के मूल सिद्धांतों पर आधारित हो।

(लेखक: कांग्रेस विधायक दल के उप नेता चौधरी आफ़ताब अहमद

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