हिमाचल प्रदेश पर लगभग 94 हजार करोड़ रुपये का भारी कर्ज है. इस वित्तीय बोझ ने राज्य की वित्तीय स्थिति को अत्यधिक कमजोर कर दिया है। हिमाचल प्रदेश के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि राज्य के 2 लाख कर्मचारियों और 1.5 लाख पेंशनर्स के खातों में 1 तारीख को न तो सैलरी आई और न ही पेंशन। यह घटना राज्य की वित्तीय स्थिति और प्रबंधन को लेकर गंभीर चिंताएं उत्पन्न कर रही है। हिमाचल प्रदेश में हमेशा से 1 तारीख को सैलरी और पेंशन का भुगतान समय पर किया जाता रहा है, लेकिन इस बार ऐसा न होने से कर्मचारियों और पेंशनर्स के बीच असंतोष और चिंता का माहौल बन गया है।
वित्तीय विशेषज्ञों का मानना है कि राज्य सरकार की वित्तीय स्थिति इस समय कठिन दौर से गुजर रही है, जिसके कारण यह देरी हुई है। सरकार के खजाने में धन की कमी और बढ़ते खर्चों के चलते इस तरह की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। हालांकि, राज्य सरकार की ओर से अब तक इस देरी के पीछे का कोई स्पष्ट कारण नहीं बताया गया है, जिससे स्थिति और भी जटिल हो गई है।
इस देरी के कारण कर्मचारियों और पेंशनर्स को अपने मासिक बजट में मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है, खासकर उन लोगों के लिए जो पूरी तरह से अपनी सैलरी या पेंशन पर निर्भर हैं। इससे उनके दैनिक जीवन में भी आर्थिक संकट उत्पन्न हो सकता है।
विपक्षी दलों ने इस मुद्दे को लेकर राज्य सरकार पर निशाना साधा है और इसे वित्तीय कुप्रबंधन का परिणाम बताया है। विपक्ष का कहना है कि सरकार को इस मामले को गंभीरता से लेना चाहिए और जल्द से जल्द सैलरी और पेंशन का भुगतान सुनिश्चित करना चाहिए, ताकि कर्मचारियों और पेंशनर्स को राहत मिल सके।
सरकार से जुड़े सूत्रों के मुताबिक, राज्य के मुख्यमंत्री और वित्त विभाग इस मामले पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं और जल्द ही इस समस्या का समाधान निकालने के लिए कदम उठाए जाएंगे। उम्मीद की जा रही है कि सरकार जल्द ही कोई ठोस योजना पेश करेगी जिससे भविष्य में इस तरह की समस्या का सामना न करना पड़े।
इस स्थिति ने हिमाचल प्रदेश के कर्मचारियों और पेंशनर्स के बीच गहरी निराशा पैदा की है, और राज्य की वित्तीय सेहत पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। अब देखना यह है कि सरकार इस चुनौती का सामना कैसे करती है और कितनी जल्दी यह स्थिति सामान्य होती है।
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