
अब फिर से लागू करने की तैयारी की जा रही है।
नई दिल्ली, 4 मार्च
केंद्र सरकार एक बार फिर किसानों के लिए खतरे की घंटी बजाने जा रही है। तीन काले कानूनों को लागू करने की दिशा में सरकार कदम बढ़ा रही है, जो पहले भी किसान आंदोलन का कारण बने थे। किसान नेता रवि आजाद ने मीडिया से बातचीत करते हुए सरकार पर निशाना साधा और कहा कि ये काले कानून फिर से लागू होने जा रहे हैं, जो किसानों के लिए एक आफत साबित होंगे। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि भाजपा सरकार किसानों के हित की बात करती है, लेकिन असलियत यह है कि यह सरकार किसानों की विरोधी है।
काले कानूनों का उद्देश्य और किसान विरोध
वह आगे कहते हैं कि 2020 में भारतीय सरकार ने जिन तीन कृषि कानूनों को पारित किया था, उन्हें अब फिर से लागू करने की तैयारी की जा रही है। ये कानून खेती और किसानों के लिए एक बड़ा बदलाव लाएंगे, लेकिन इसका फायदा केवल बड़े कॉर्पोरेट कंपनियों को होगा और इससे किसानों की स्थिति और खराब हो सकती है।
काले कानूनों के प्रमुख बिंदु:
-
कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) कानून – इस कानून के तहत किसानों को मंडी के बाहर अपनी उपज बेचने की स्वतंत्रता मिलती है, जिससे वे प्रतिस्पर्धात्मक मूल्य प्राप्त कर सकते हैं। लेकिन इससे मंडी प्रणाली कमजोर हो सकती है, और किसानों को सीधे कॉर्पोरेट कंपनियों के अधीन काम करना पड़ सकता है।
-
कृषि मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाएं कानून – इस कानून के तहत किसानों और व्यापारियों के बीच कृषि उत्पादों के मूल्य और गुणवत्ता की गारंटी देने वाले समझौतों की व्यवस्था की जाती है। हालांकि, इसका लाभ बड़ी कंपनियों को हो सकता है क्योंकि उनके पास बड़े पैमाने पर उत्पादन और इन समझौतों को लागू करने की ताकत होती है।
-
आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून – इस कानून के तहत आवश्यक वस्तुओं के भंडारण पर प्रतिबंध को हटा लिया गया है, जिससे व्यापारी अब अधिक मात्रा में अनाज और अन्य कृषि उत्पादों का भंडारण कर सकते हैं। इससे बाजार में मूल्य वृद्धि हो सकती है और छोटे किसानों को नुकसान हो सकता है क्योंकि बड़े व्यापारियों और कंपनियों के पास अधिक भंडारण क्षमता होगी और वे बाजार मूल्य को नियंत्रित कर सकते हैं।
किसान क्यों विरोध कर रहे हैं?
किसान इन काले कानूनों का विरोध कर रहे हैं क्योंकि उनका मानना है कि ये कानून उनकी खेतों की संपत्ति और आजीविका को बड़े कॉर्पोरेट्स के हाथों में सौंप देंगे। उनका यह भी कहना है कि ये कानून किसानों को मंडी सिस्टम से बाहर कर देंगे और मूल्य निर्धारण का पूरा नियंत्रण बड़े व्यापारियों और कंपनियों के हाथों में चला जाएगा।
कॉर्पोरेट के हवाले खेती का खतरा
किसानों का यह भी आरोप है कि ये कानून कॉर्पोरेट कंपनियों को खेती में अपनी दखलंदाजी बढ़ाने का मौका देंगे। इससे कंपनियां किसानों से सस्ते में अनाज खरीदकर उसे महंगे दामों में बेचेंगी। इससे छोटे किसान पहले से ही वित्तीय संकट का सामना कर रहे हैं और दबाव में आ जाएंगे। इसके अलावा, मंडी प्रणाली कमजोर होने से न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) भी समाप्त हो सकता है, जो किसानों को उनकी फसल का सही मूल्य दिलवाता है।
क्या हो सकते हैं परिणाम?
-
छोटे किसानों का संकट बढ़ेगा: छोटे और मझोले किसान पहले से ही कम दामों पर अपनी फसल बेचने को मजबूर होते हैं। यदि कॉर्पोरेट कंपनियां पूरी तरह से खेती में घुसपैठ करती हैं, तो यह उनकी स्थिति और भी खराब कर सकता है।
-
मंडी सिस्टम की समाप्ति: किसानों के पास अपने उत्पाद को बेचने का पारंपरिक तरीका मंडी था, जहां उन्हें MSP (न्यूनतम समर्थन मूल्य) मिलता था। इन कानूनों के लागू होने से यह सिस्टम कमजोर हो सकता है और किसानों को अपनी फसल का सही मूल्य नहीं मिल पाएगा।
-
कॉर्पोरेट का दबदबा बढ़ेगा: बड़ी कंपनियां सस्ते दामों पर किसानों से फसल खरीदने में सक्षम होंगी, जो उन्हें और भी ताकतवर बना देगी और किसानों को उनके उत्पाद का सही मूल्य नहीं मिलेगा।
केंद्र सरकार द्वारा तीन काले कानूनों को फिर से लागू करने से किसानों की स्थिति और बिगड़ सकती है। हालांकि सरकार दावा कर रही है कि ये सुधार कृषि क्षेत्र के लिए फायदेमंद होंगे, लेकिन असल में इससे कॉर्पोरेट कंपनियों का दबदबा बढ़ेगा और किसानों को उनकी मेहनत का सही मूल्य नहीं मिलेगा। अब किसानों को अपनी आवाज उठानी होगी और सरकार से इन कानूनों पर पुनर्विचार करने की अपील करनी होगी, ताकि उनके हितों की रक्षा हो सके और उनकी मेहनत का उचित मूल्य मिल सके।