पटौदी, 18 अक्टूबर (सैनी) – हर वर्ष की तरह इस बार भी ग्राम जाटोली के शहीद दलीप सिंह की 62वीं पुण्यतिथि पर ग्रामीण उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे। आर्य समाज जाटोली में आयोजित इस कार्यक्रम में शहीद के बलिदान को याद किया जाएगा, जिन्होंने 1962 के भारत-चीन युद्ध में अपने प्राणों की आहुति दी थी। भारतीय सेना ने उनकी अद्वितीय वीरता को सम्मानित करते हुए उन्हें “हीरो ऑफ नेफा” की उपाधि दी थी।
शहीद दलीप सिंह: वीरता और बलिदान की मिसाल
दलीप सिंह, जिनका जन्म 2 फरवरी 1941 को जाटोली गांव में हुआ था, 21 वर्ष की उम्र में ही मातृभूमि के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वाह करते हुए शहीद हो गए। 1962 के भारत-चीन युद्ध में नामकाचू सैक्टर के मोर्चे पर तैनात दलीप सिंह ने अदम्य साहस का परिचय देते हुए 20 चीनी सैनिकों को मार गिराया, लेकिन अपने हथियार खत्म होने के बाद निहत्थे ही शहादत को गले लगा लिया।
नव नवेली दुल्हन को छोड़कर चले गए थे युद्ध में
21 जून 1962 को दलीप सिंह की शादी थोरा बांकीपुर की रामावती से हुई थी। शादी के कुछ ही दिनों बाद, सेना से युद्ध में लौटने का आदेश प्राप्त हुआ। पत्नी रामावती की रची हुई मेहंदी को छोड़कर, दलीप सिंह युद्ध के मैदान में चले गए। 20 अक्टूबर 1962 को उनकी वीरगति की खबर उनके गांव पहुंची, जिसने पूरे क्षेत्र को गर्व और दुख से भर दिया।
वीरांगना रामावती का समर्पण
शहीद दलीप सिंह की पत्नी रामावती ने पति की यादों के सहारे अपना पूरा जीवन बिताया। वह अपने ससुराल में ही जीवन पर्यंत रहीं और उनकी प्रतीक्षा करती रहीं। रामावती की मृत्यु के साथ ही इस प्रेम और समर्पण की अद्वितीय गाथा समाप्त हुई। उनके साहस और समर्पण की मिसाल आज भी क्षेत्र में दी जाती है।
स्मारक की कमी: ग्रामीणों की मांग
दलीप सिंह के बलिदान के बावजूद, जाटोली गांव में आज भी उनके नाम पर कोई स्मारक या स्मृति स्थल नहीं है। कई बार ग्रामीणों ने प्रशासन से मांग की है कि उनके सम्मान में एक स्मारक बनाया जाए, लेकिन अब तक प्रशासन की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। क्षेत्र के लोग इस वीर सपूत की स्मृति में एक स्मारक बनाने की मांग लंबे समय से करते आ रहे हैं, ताकि आने वाली पीढ़ियां उनके बलिदान को याद रख सकें।