
महागठबंधन में अफ़सरशाही रूप से कई दल शामिल हैं
बिहार चुनावी रण में सीटों की छीना-झपटी
NDA और INDIA दोनों परेशान !
महागठबंधन ने एक संभावित फॉर्मूला तैयार किया है
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की घोषणा होने में ज्यादा समय बचा नहीं है। लेकिन चुनावी मोर्चे पर तैयारियों की गति तेज है — खासकर सीट शेयरिंग को लेकर। एनडीए और महागठबंधन — दोनों ही गठनों में अभी तक कोई अंतिम फॉर्मूला सामने नहीं आ पाया है, और दोनों तरफ से राजनीतिक दबाव, उम्मीदें और बयानबाज़ी लगातार सामने आ रही है। एनडीए के अंदर छोटे सहयोगी दल जैसे कि चिराग पासवान की एलजेपी‑रामविलास (LJP‑RV), जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा ने सीटों की मांग बढ़ा दी है। मांझी ने 15‑20 सीटों से कम नहीं मिलने की चेतावनी दी है। अगर उनसे उम्मीद के मुताबिक सीटें नहीं मिलीं, तो वे “50‑100 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने” की बात तक कह रहे हैं। अब ये बात खेला बिगाड़ सकती है सहयोगी पार्टियां जेडीयू और बीजेपी के बीच सत्ता संतुलन और प्रभाव की राजनीति लगातार चल रही है। यह देखा जा रहा है कि जेडीयू को शायद 2020 के मुकाबले इस बार कम सीटें मिल सकती हैं, जिससे गठबंधन में संतुलन बदल सकता है। चिराग पासवान और मांझी के बयानों ने गठबंधन को सार्वजनिक दबाव में ला दिया है। कुछ नेताओं के अनुसार ये बयान केवल अपनी पोजिशनिंग बढ़ाने के लिए हैं,,,,,एनडीए यह ध्यान में रख रहा है कि पिछले चुनावों में कहाँ घाटा हुआ या जहाँ विरोधियों ने अच्छा प्रदर्शन किया। सीमांचल जैसे इलाकों में मुस्लिम, पिछड़े और अन्य अल्पसंख्यक वोटर बेस को साधने की रणनीति पर काम चल रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पूर्णिया यात्रा इसीलिए महत्वपूर्ण मानी जा रही है,,,महागठबंधन में अफ़सरशाही रूप से कई दल शामिल हैं RJD, कांग्रेस, वाम दल (CPI, CPI‑ML, CPM), विकासशील इंसान पार्टी (VIP), झारखंड मुक्ति मोर्चा आदि,,,,इस गठबंधन में कांग्रेस और वाम दलों ने इस बार अधिक सीटों की मांगें की हैं, जो कि RJD कुछ सुकून नहीं दे रही हैं मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार महागठबंधन ने एक संभावित फॉर्मूला तैयार किया है: लगभग 136 सीटें RJD को, 52 कांग्रेस को और वाम दलों को 34 सीटें दी जाएँ। लेकिन यह फॉर्मूला अभी आधिकारिक नहीं है और इसमें संशोधन की गुंजाइश बनी हुई है,,,,,कुल मिलाकर सीट शेयरिंग की जद्दोजहद अब सिर्फ संख्या का खेल नहीं है, बल्कि राजनीतिक शक्ति, प्रतीक‑मूल्य, जुड़ाव, और गठबंधन की विश्वसनीयता से जुड़ा मामला है। जिस गठबंधन को समय रहते समन्वय करने और अपेक्षाएँ पूरा करने में सफलता मिलेगी, वह चुनावी लड़ाई में बेहतर स्थिति में होगा। फिलहाल तस्वीर ये है कि दोनों खेमे पेंच में हैं आख़िरी दौर के फैसले अभी बाकी हैं।