
16 सितम्बर 2025 — ब्रिटेन इस समय अप्रवासन (Immigration) को लेकर तेज़ बहस और विरोध का सामना कर रहा है। राजधानी लंदन में रविवार को “Unite the Kingdom” नामक विशाल रैली निकाली गई जिसमें हजारों लोग शामिल हुए। प्रदर्शनकारियों ने आरोप लगाया कि लगातार बढ़ते अप्रवासी (Migrants) देश की पहचान, संस्कृति और रोज़गार पर असर डाल रहे हैं।रैली में शामिल लोगों का कहना था कि उन्हें डर है कि आने वाले दशकों में ब्रिटेन के मूल नागरिक अल्पसंख्यक हो जाएंगे। पुलिस के अनुसार प्रदर्शन शांतिपूर्ण रहा, हालांकि कुछ जगह हल्की झड़पें भी देखने को मिलीं और दर्जनों लोगों को हिरासत में लिया गया। आयोजकों ने इसे “राष्ट्रीय अस्मिता बचाने की मुहिम” बताया, वहीं कई नेताओं ने इस विरोध को “भ्रामक आंकड़ों पर आधारित राजनीति” कहा।ब्रिटेन की जनगणना और प्रवासन से जुड़े विश्लेषण बताते हैं कि वर्तमान में देश की कुल आबादी का लगभग 73% हिस्सा White British के रूप में दर्ज है। कुछ अध्ययनों का अनुमान है कि 2050 तक यह अनुपात घटकर 57% तक रह सकता है और 2060 के बाद ब्रिटेन में मूल निवासियों का हिस्सा 50% से भी कम हो सकता है। हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि यह सिर्फ प्रोजेक्शन है, निश्चित भविष्यवाणी नहीं। जन्मदर, प्रवासन नीतियां और सामाजिक परिस्थितियाँ इस अनुपात को बदल सकती हैं।
ब्रिटेन में उठी यह चिंता पूरी तरह नई नहीं है। वेस्ट एशिया का छोटा देश लेबनान कभी ईसाई बहुसंख्यक हुआ करता था। 1970 के दशक तक यहाँ ईसाइयों की तादाद लगभग आधी आबादी से भी अधिक थी, लेकिन क्षेत्रीय संघर्षों, फिलिस्तीनी शरणार्थियों के आगमन और लंबे गृहयुद्ध (1975–1990) ने इसकी जनसांख्यिकी पूरी तरह बदल दी। लाखों ईसाई देश छोड़कर चले गए और आज वहाँ मुस्लिम समुदाय बहुसंख्यक माना जाता है। लेबनान का यह उदाहरण अक्सर बताया जाता है कि कैसे जनसंख्या संतुलन बदलने से सामाजिक और राजनीतिक समीकरण भी बदल जाते हैं।विशेषज्ञ मानते हैं कि ब्रिटेन जैसे लोकतांत्रिक और बहुसांस्कृतिक समाज में अप्रवासन को संतुलित दृष्टिकोण से देखने की ज़रूरत है। आँकड़े बताते हैं कि प्रवासी समुदाय देश की अर्थव्यवस्था और श्रम बाजार में अहम योगदान भी देते हैं। इसलिए केवल डर या आशंका पर आधारित बयानबाज़ी समाज को बाँट सकती है।