
मुख्यमंत्री ने की घोषणा, विभाजन से जुड़े साहित्य और दस्तावेजों की लगेगी प्रदर्शनी स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल होगा विभाजन विभीषिका का इतिहास बेटियों के विवाह के बाद नाम परिवर्तन के कारण होने वाली दिक्कतें होंगी दूर, नाम में संशोधन के लिए हरियाणा सरकार करेगी विशेष प्रावधान
फरीदाबाद में आयोजित हुआ विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस, 1947 के बंटवारे की त्रासदी में शहीद पूर्वजों को दी गई श्रद्धांजलि
सामाजिक एकता के सूत्र जब टूटते हैं तो देश भी टूट जाया करते हैं- नायब सिंह सैनी
मुख्यमंत्री ने की घोषणा, विभाजन से जुड़े साहित्य और दस्तावेजों की लगेगी प्रदर्शनी
फरीदाबाद, 14 अगस्त। हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने गुरुवार को फरीदाबाद में विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के अवसर पर आयोजित राज्य स्तरीय कार्यक्रम में 1947 के भारत विभाजन की भीषण त्रासदी का स्मरण करते हुए लाखों विस्थापित परिवारों की पीड़ा और संघर्ष को नमन किया। इस मौके पर उन्होंने घोषणा करते हुए कहा कि विभाजन से संबंधित साहित्य एवं दस्तावेजों की प्रदर्शनी लगाई जाएगी ताकि लोगों को विभाजन के बारे में जानकारी मिल सके। साथ ही, विभाजन विभीषिका के विषय को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल किया जाएगा, ताकि हमारे पूर्वजों ने जो अत्याचार सहे उनकी जानकारी आने वाली पीढ़ियों को मिल सके।
इसके अलावा, मुख्यमंत्री ने कहा कि सामाजिक परंपराओं के कारण बेटियों की शादी के बाद उनका नाम बदल दिया जाता है और दस्तावेजों में नाम बदलने के कारण दिक्कतें आती हैं, इसके लिए हरियाणा सरकार द्वारा नाम में संशोधन करने के लिए एक विशेष प्रावधान किया जाएगा। मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर कुरुक्षेत्र में विभाजन विभीषिका स्मृति स्मारक के निर्माण के लिए अपने ऐच्छिक कोष से 51 लाख रुपये देने की घोषणा की। कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री व अन्य अतिथियों ने विभाजन का दंश झेलने वाले पूर्वजों को सम्मान देते हुए प्रतीकात्मक रूप से सरदार मोहर सिंह भाटिया, जो विभाजन के समय सिर्फ 7 साल के थे, उन्हें शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया।
मुख्यमंत्री ने विभाजन की विभीषिका में जान गंवाने वाले पूर्वजों को भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि यह दिन हमें वर्ष 1947 के उस भयानक समय की याद दिलाता है, जब भारत का विभाजन हुआ था। इस विभाजन ने न केवल देश को दो टुकड़ों में बांटा, बल्कि लाखों परिवारों के जीवन में एक गहरा और दर्दनाक अध्याय भी लिख दिया। उनकी पीड़ा से आहत होकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश के बंटवारे को 20वीं शताब्दी की सबसे बड़ी त्रासदी कहा। उन्होंने 15 अगस्त, 2021 को स्वतंत्रता दिवस पर आजादी के अमृत महोत्सव का शुभारंभ करते हुए इस विभाजन में अपनी जान गंवाने वाले लोगों की याद में ’विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ मनाने की घोषणा की थी।
देश के विभाजन के दर्द को कभी भुलाया नहीं जा सकता
नायब सिंह सैनी ने कहा कि हरियाणा की इस भूमि ने बंटवारे के दर्द को कुछ अधिक ही सहन किया है। यहां से अनेक परिवार पाकिस्तान तो गए ही, उस समय के पश्चिमी पंजाब से उजड़कर आने वाले परिवारों की संख्या भी अन्य राज्यों की तुलना में अधिक है। बेशक आज देश बहुत आगे बढ़ गया है, दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र और चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है, लेकिन देश के विभाजन के दर्द को कभी भुलाया नहीं जा सकता है।
उन्होंने कहा कि फरीदाबाद शहर उस त्रासदी का जीता-जागता प्रमाण है। जब देश का बंटवारा हुआ, तो लाखों लोग अपना सब कुछ छोड़कर यहां आए थे। ये वे लोग थे, जिन्होंने अपने घर-बार, अपनी ज़मीनें और अपनी विरासत खो दी थीं। उनके सामने एक अनिश्चित भविष्य था, लेकिन उनके हौसले बुलंद थे। फरीदाबाद को उनके पुनर्वास के लिए एक नया शहर बनाने का निर्णय लिया गया। यह सिर्फ एक शहर नहीं, बल्कि आशा की एक नई किरण थी। विस्थापित लोगों ने अपनी मेहनत और लगन से इस शहर को खड़ा किया। उन्होंने न केवल अपने लिए एक नया शहर बनाया, बल्कि इस शहर को हरियाणा का एक प्रमुख औद्योगिक केंद्र भी बना दिया।
उन्होंने कहा कि देश के विभाजन की विभीषिका के पीड़ित लोगों की याद में फरीदाबाद के बड़खल में एक स्मारक बनाया गया है। प्रदेश में अन्य स्थानों पर भी विभाजन विभीषिका स्मारक बनाए जा रहे हैं। कुरुक्षेत्र के मसाना गांव में विश्व स्तरीय शहीदी स्मारक बनाया जाएगा। उन्होंने कहा कि आज का यह दिन दुख और शोक मनाने का दिन तो है ही, बल्कि यह हमें सीख भी देता है कि हमें अपने देश की एकता और अखंडता को बनाए रखना है। हमें उन गलतियों से सीखना होगा, जिन्होंने इतनी बड़ी त्रासदी को जन्म दिया। हमारे लिए यह समझना बहुत ज़रूरी है कि धर्म, जाति और भाषा के नाम पर नफरत फैलाना कितना खतरनाक हो सकता है।
सामाजिक एकता के सूत्र जब टूटते हैं तो देश भी टूट जाया करते हैं
मुख्यमंत्री ने कहा कि भारत मां के सपूतों ने किसी का भय नहीं माना, किसी लालच में नहीं आए और अपने देश, धर्म व स्वाभिमान को तरजीह देते हुए दर-दर की ठोकरें खाना स्वीकार किया। भूखे-प्यासे खाली हाथ मेहनत की और फिर से अपने आशियाने बसाए। उन्होंने कहा कि उन परिवारों ने और उनकी नई पीढ़ियों ने हरियाणा के विकास में उल्लेखनीय भूमिका निभाई है। आज हम जो ’विकसित हरियाणा’ देख रहे हैं, इसे बनाने में उन मेहनतकश लोगों द्वारा बहाए गए पसीने का बड़ा योगदान है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि आज का दिन हमें भाईचारे का संदेश देता है। यह दिन हमें याद दिलाता रहेगा कि सामाजिक एकता के सूत्र जब टूटते हैं तो देश भी टूट जाया करते हैं। उन्होंने अपील की कि उस त्रासदी से सबक लेते हुए प्रेम, प्यार और भाईचारे को मजबूत करने का संकल्प लें। हम सब मिलकर यह संकल्प लें कि हम एक ऐसे हरियाणा और एक ऐसे भारत का निर्माण करेंगे, जहां भाईचारा, शांति और सद्भाव सर्वोच्च हो। हम आने वाली पीढ़ियों को एक ऐसा समाज देंगे, जो एकजुटता और मानवता की मिसाल पेश करेगा।
कांग्रेस ने वीरों की शहादत को भुला दिया, विभाजन की विभीषिका ने लाखों लोगों के जीवन को झकझोर दिया : केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल
कार्यक्रम में केंद्रीय बिजली, आवासन एवं शहरी कार्य मंत्री मनोहर लाल ने अपने संबोधन में कहा कि आजादी से पहले देश का विभाजन होना एक ऐसी घटना थी, जिसने लाखों लोगों के जीवन को झकझोर दिया। उन्होंने कहा कि उस दौर में लोग जान बचाने के लिए नहीं, बल्कि देश प्रेम और अपने धर्म पर अडिग रहने के लिए यहां आए थे। वहां धर्म बदलकर जान, ज़मीन-जायदाद सब बच सकती थी, लेकिन उन्होंने यह रास्ता नहीं चुना। उस समय भी कहा जाता था कि आज़ादी भले देर से मिले लेकिन विभाजन नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि जो परिवार पश्चिमी पंजाब से आए थे, तब तो पाकिस्तान बना भी नहीं था, फिर भी उन परिवारों को ‘पाकिस्तानी’ और ‘रिफ्यूजी’ कहा जाता था।
उन्होंने कहा कि जब उस दौर में विस्थापितों को आरक्षण देने का प्रस्ताव आया, तो समाज ने एकजुट होकर कहा कि उन्हें आरक्षण नहीं चाहिए। उन लोगों ने व्यापार, शिक्षा और सामाजिक उत्थान में मेहनत और पुरुषार्थ के साथ प्रगति की। हमारी पहचान भारतीय नागरिक के रूप में है और प्रदेश के रूप में हम हरियाणवी हैं।
मनोहर लाल ने कहा कि आजादी में अनेक वीरों का योगदान रहा। कांग्रेस ने उस समय शहादत को याद करने की बजाय सब भूल जाना उचित समझा। कांग्रेस के परिवारवाद पर प्रहार करते हुए उन्होंने कहा कि यह इंदिरा गांधी के समय में शुरू हुआ, जिन्होंने लोकतंत्र की हत्या करते हुए आपातकाल लगाया। आज देश की जनता कांग्रेस को समझ चुकी है। उन्होंने कहा कि जनता ने बीजेपी को विकल्प के रूप में चुना और 2014 में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी, जो एक साधारण परिवार से हैं, उनको देश की कमान सौंपी। इसी तरह नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाकर लोकतंत्र का सम्मान किया गया। वोट की चोरी के आरोपों पर उन्होंने कांग्रेस को घेरते हुए कहा कि यह तो ‘चोर मचाए शोर’ की स्थिति है।
विभाजन के जिम्मेदार लोगों को न माफ करें, न भूलें : केंद्रीय सहकारिता राज्य मंत्री
कार्यक्रम में केंद्रीय सहकारिता राज्य मंत्री कृष्ण पाल गुर्जर ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के आह्वान पर स्वतंत्रता दिवस से एक दिन पहले पूरा देश आज विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस मना रहे हैं। 14 अगस्त 1947 की उस काली रात को कौन भुला सकता है। जिन्ना और नेहरू की प्रधानमंत्री बनने की लालसा और मुस्लिम लीग के धर्म के आधार पर देश बनाने की जिद ने भारत का बंटवारा कर दिया। लोगों को अपना घर बार छोड़ने के लिए मजबूर किया। महिलाओं की अस्मिता से खिलवाड़ किया गया। निर्दोष लोगों का कत्लेआम किया गया।
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने उस विभाजन के दिन को आने वाली पीढ़ियों को बताने के लिए इस दिवस को मनाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल ने सबसे पहले देश में इस दिवस को मनाने का काम हरियाणा में प्रारंभ किया।
उन्होंने कहा कि तब भी कुर्सी की लालसा कांग्रेस को थी, इस देश का बंटवारा किया और आज भी कुर्सी के कारण पूरी दुनिया में भारत की सेना को बदनाम करने का काम कर रहे हैं। कांग्रेस पार्टी को तब भी देश के लोगों पर विश्वास नहीं था। आज भी देश की चुनी हुई सरकार पर, सेना पर, न्यायालयों पर, संविधान पर और न ही संवैधानिक संस्थाओं पर भरोसा है। ये लोग पूरी दुनिया में भारत के लोगों को और सेना को बदनाम करने के काम कर रहे हैं।
1947 का विभाजन मानव इतिहास की सबसे बड़ी त्रासदी : डॉ. कृष्ण लाल मिड्ढा
हरियाणा विधानसभा के उपाध्यक्ष डॉ. कृष्ण लाल मिड्ढा ने कहा कि विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के अवसर पर 1947 के विभाजन के दौरान अपने प्राणों की आहुति देने वाले लाखों लोगों को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने कहा कि 1947 का विभाजन मानव इतिहास की सबसे भीषण त्रासदियों में से एक था, जिसमें लगभग 10 से 12 लाख लोगों ने अपने प्राणों की आहुति दी। लाखों परिवार उजड़ गए, माताओं-बहनों की अस्मिता की रक्षा हेतु स्वजन ने स्वयं बलिदान दिया, और ट्रेनें लाशों से भरी हुई सीमाओं पर पहुँचीं। उन्होंने कहा कि उस दौर का दर्द आज भी पीढ़ियों की स्मृतियों में जिंदा है।