सिरसा, 29 जून। अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त वैज्ञानिक एवं जेसीडी विद्यापीठ के महानिदेशक डॉ. कुलदीप सिंह ढींडसा ने कहा कि एक ओर जहां रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने सभी बैंकों को निदेज़्श दिए हैं कि जिन लोगों ने बैंकों का कजज़् वापिस करने में असमर्थता दिखाई है, यद्यपि वह ऋण चुकाने की स्थिति में है, ऐसे लोगों को समझौते के अंतगज़्त्त कजज़् में माफी दी जाए, वहीं दूसरी ओर 19422 किसानों को कजज़् न वापिस करने के कारण उनकी जमीनें कुकज़् की जा रही है। खेद का विषय है कि पंजाब सहकारी कृषि बैंक ने लगभग 71000 ऐसे लोगों को जमीन की कुर्की करने के आदेश दिए हैं।
डॉ. ढींडसा ने जारी ब्यान के जरिये प्रश्न किया कि अन्नदाता के साथ यह सौतेला व्यवहार क्यों? माना वह कई बार ऋण वापिस नहीं कर पाता क्योंकि उसके पीछे कई खास कारण होते हैं, जिनमें से मुख्य कारण मंडी में किसानों की फसल आते ही उसके दामों में भारी कमी आ जाती है तथा ज्योंहि अन्न आढ़तियों के भण्डार गृहों में पहुंच जाता है तो उसके भाव बढऩे शुरू हो जाते हैं। अधिकांश कृषक आत्महत्याएं और कृषि ऋण न वापस कर पाने की स्थिति के कारण ही करते हैं जोकि दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। दशकों से किसानों को उनकी वाजिब आय से वंचित किया जाता रहा है। अंतत: जब किसान बैंक की किश्त चुकाने में असफल हो जाते हैं तो उनकी जमींनें भी छीन ली जाती हैं।
सरकार के आंकड़ों के मुताबिक आज हर किसान पर औसतन 74121 रूपए का कर्ज है और लगभग 70 प्रतिशत किसान कर्ज के बोझ तले दबे हैं। यह आंकड़ा 2013 के बाद लगातार बढ़ता जा रहा है। यद्यपि सरकार फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करती है परंतु उसे लागू करने में कोई गंभीरता नहीं दिखाई जाती जिसका सीधा नकारात्मक प्रभाव किसानों की आय पर पड़ता है। यह केवल बकायेदार किसान ही समझ सकता है कि वह कितने मानसिक तनाव में रहता है और उनके सिर पर डैमोकलिस की तलवार लटक रही है। डॉ. ढींडसा ने कहा कि यह चिंतन का विषय है कि सरकार किसानों को राहत प्रदान करने की बजाए अनेक ऐसे नियम बनाने में लगी है जिससे गरीब किसान कजज़्दार हो रहा है तथा पूंूजीपति किसानों की आय निरंतर बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि हमें इसके लिए उचित कानून बनाने होंगे ताकि हमारे देश का अन्नदाता सुरक्षित एवं समृद्ध हो सकें तथा उनके द्वारा की जा रही आत्महत्याओं की संख्या में कमी आएं।