देश में भीषण गर्मी पड़ रही है। पारा 50 डिग्री के ऊपर पहुँच गया है। 50 डिग्री के ऊपर नियम है कि क्षेत्र में लॉकडाउन लग जाना चाहिए।
राजधानी दिल्ली के एक क्षेत्र में तो देश में अब तक का सबसे ज़्यादा तापमान 52.3 डिग्री पर पहुँच गया। सरकार और कितने तापमान का इंतज़ार कर रही है ? रोज़ अनेक लोग चिलचिलाती गर्मी में दम तोड़ रहे हैं। लेकिन देश के “कर्णधार” चुनावी चौसर में व्यस्त हैं। बिलकुल महाभारतकी तरह पाँसे फेंके जा रहे हैं। जनता मोहरा बनी हुई है। पेट की ख़ातिर तपती “चोपड़” पर कभी इसकी रैली तो कभी उसकी रैली में फुदक कर पहुँच रही है।
सभाओं में मंच के सामने आँचल में व्याकुल बच्चों को सम्भालती औरतों को देखकर भी किसी का दिल नहीं पसीजता। बस हमें तो भीड़ दिखानी है। दोज़ख़ में जाए दुनिया।हैरानी होती है यह देखकर कि वोट के लिए कहाँ तक गिर सकता है इंसान। मीडिया भी चुप है। क्यों? कहीं जरा सी घटना होने पर दिन भर चिल्ल पौ करने वाले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के एंकर जैसे “अंधे” हो गये हैं। नेताओं की तरह उन्हें भी सत्ता की मलाई जो चाटनी है।
आज राहुल गांधी को एक रैली में सिर पर पानी डालते देखा तो प्रधान सेवक को यह कहते सुना भई इन्हें (भीड़ को) पानी पिलाइये। खबरिया चैनलों पर यह दृश्य किसी भी संवेदनशील व्यक्ति को झकझोर सकता है लेकिन एंकरों के लीपे पुते चहरों पर शिकन नहीं दिखी। केंद्र को आपदा आपातकाल लगाना चाहिए। चुनाव आयोग को भी सोचना चाहिए कि 50 डिग्री पर कोई कैसे मतदान के लिए निकलेगा? बाद में जानता को दोष दिया जाता है कि लोकतंत्र की रक्षा के लिए आगे नहीं आए। क्यों आएं? जान है तो जहान है। चुनाव तो फिर पाँच साल में आ जाएँगे। फिर वही प्रलोभन, वादे और शिकवे – शिकायतें होंगी। एक दूसरे को दुत्कारा जाएगा। अभी तो बस जीवन बचाने की सोचिए। बाक़ी फिर कभी।
राजीव तिवारी जयपुर।