
आज सुप्रीम कोर्ट में मैरिटल रेप (वैवाहिक बलात्कार) से संबंधित कई याचिकाओं पर महत्वपूर्ण सुनवाई शुरू होगी। इन याचिकाओं में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 375 में निहित उस प्रावधान को चुनौती दी गई है, जो वैवाहिक बलात्कार को अपराध के रूप में मान्यता नहीं देता, यदि पत्नी की उम्र 18 वर्ष से अधिक है और पति-पत्नी के बीच सहमति से संबंध स्थापित हुए हैं।
याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि यह अपवाद भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है, विशेष रूप से महिलाओं के शरीर पर उनके अधिकार और स्वतंत्रता का हनन करता है। वे मांग कर रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट इस अपवाद को असंवैधानिक घोषित करे और इसे हटाने का निर्देश दे, ताकि किसी भी महिला को वैवाहिक संबंधों के भीतर भी बलात्कार से सुरक्षा मिल सके।
वर्तमान में, भारत में वैवाहिक बलात्कार को लेकर क़ानून काफी विवादास्पद है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह कानून महिलाओं के साथ अन्याय करता है और उनके मानवाधिकारों का हनन करता है। उनके अनुसार, यह अपवाद महिलाओं के प्रति भेदभावपूर्ण है और यह मानता है कि विवाह के भीतर सहमति का कोई महत्व नहीं है। इसके अलावा, वे यह भी तर्क देते हैं कि इस अपवाद का अस्तित्व महिलाओं की सुरक्षा को खतरे में डालता है और यह एक आधुनिक और प्रगतिशील समाज के लिए उपयुक्त नहीं है।
वहीं, दूसरी ओर, इस मुद्दे पर विभिन्न सामाजिक और कानूनी दृष्टिकोण भी हैं। कुछ लोग इस तरह के कानून के संभावित दुरुपयोग को लेकर चिंतित हैं। उनका मानना है कि वैवाहिक बलात्कार को अपराध बनाने से विवाह संस्था में जटिलताएं उत्पन्न हो सकती हैं और यह कानून का दुरुपयोग हो सकता है। इस मुद्दे पर कुछ संगठनों का यह भी कहना है कि विवाह के भीतर बलात्कार को अपराध मानने से परिवार में अस्थिरता आ सकती है और यह विवाह संस्था को कमजोर कर सकता है।
यह मामला कानूनी और सामाजिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है। सुप्रीम कोर्ट में इस मुद्दे पर सुनवाई के दौरान दिए गए तर्क और न्यायिक टिप्पणियां व्यापक प्रभाव डाल सकती हैं, क्योंकि यह भारत के लाखों विवाहित महिलाओं के अधिकारों और उनके जीवन को सीधे प्रभावित करेगा।
सुप्रीम कोर्ट के इस मामले पर दिए जाने वाले फैसले का व्यापक असर होगा। यह न केवल कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण होगा, बल्कि यह समाज में महिलाओं की सुरक्षा और उनके अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाने में भी एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है। इस सुनवाई को व्यापक रूप से देखा जाएगा, और यह देश के न्यायिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण पड़ाव साबित हो सकता है।