कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने उत्तर प्रदेश सरकार की नई सोशल मीडिया पॉलिसी पर तीखा हमला किया है, जिसमें उन्होंने इस नीति के पीछे की मंशा पर गंभीर सवाल उठाए हैं। प्रियंका गांधी ने खुलकर पूछा है कि इस पॉलिसी के तहत महिलाओं की आवाज को किस श्रेणी में रखा जाएगा। उनका यह बयान सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और विशेष रूप से महिलाओं की आवाज़ों को दबाने के संभावित खतरे को उजागर करता है।
प्रियंका गांधी ने अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि सोशल मीडिया आज के समय में जनमत और समाज के विभिन्न मुद्दों पर चर्चा का एक महत्वपूर्ण मंच बन चुका है। यह वह जगह है जहां लोग बिना किसी डर के अपनी राय रख सकते हैं और अपनी बात को व्यापक स्तर पर फैला सकते हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि अगर उत्तर प्रदेश सरकार की सोशल मीडिया पॉलिसी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने के लिए बनाई गई है, तो इसका सबसे अधिक नुकसान उन लोगों को होगा जो अपनी आवाज़ उठाने के लिए इस मंच का उपयोग करते हैं, खासकर महिलाएं।
प्रियंका गांधी का यह सवाल विशेष रूप से इस बात को लेकर था कि सरकार की इस पॉलिसी के तहत महिलाओं की आवाज़ों को किस प्रकार से सुना जाएगा। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि महिलाओं के मुद्दे, उनकी सुरक्षा, सम्मान, और अधिकारों के संदर्भ में सोशल मीडिया एक महत्वपूर्ण माध्यम है। यदि इस पॉलिसी के माध्यम से इन आवाज़ों को दबाने की कोशिश की जाती है, तो यह महिला सशक्तिकरण के लिए एक बड़ा झटका होगा।
यह विवाद तब उठा जब उत्तर प्रदेश सरकार ने सोशल मीडिया के दुरुपयोग और फर्जी खबरों को रोकने के लिए अपनी नई पॉलिसी की घोषणा की। सरकार का तर्क है कि यह पॉलिसी शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए जरूरी है, और इसका उद्देश्य गलत सूचनाओं और अफवाहों को फैलने से रोकना है। लेकिन विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस, का आरोप है कि यह पॉलिसी वास्तव में जनता की आवाज़ों को दबाने का एक तरीका है, और इसका उपयोग सरकार के खिलाफ आलोचना को रोकने के लिए किया जा सकता है।
प्रियंका गांधी के इस बयान के बाद राजनीतिक हलकों में इस पॉलिसी को लेकर तीखी बहस शुरू हो गई है। विपक्षी दलों ने प्रियंका गांधी के समर्थन में अपनी आवाज़ उठाई है और सरकार की इस पॉलिसी पर पुनर्विचार की मांग की है। उनका कहना है कि यह पॉलिसी सरकार की आलोचना को दबाने और लोकतांत्रिक मूल्यों को कमजोर करने की कोशिश है।
वहीं, भाजपा और उत्तर प्रदेश सरकार के समर्थकों का कहना है कि यह पॉलिसी राज्य में कानून-व्यवस्था बनाए रखने और सोशल मीडिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए जरूरी है। उनका तर्क है कि सोशल मीडिया पर फैलने वाली फर्जी खबरें और गलत सूचनाएं समाज में अशांति और हिंसा का कारण बन सकती हैं, और इस पर नियंत्रण जरूरी है।
प्रियंका गांधी के इस बयान ने एक व्यापक बहस को जन्म दिया है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सोशल मीडिया के उपयोग पर किस हद तक नियंत्रण होना चाहिए। यह बहस इस बात पर भी केंद्रित है कि सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों पर आलोचना करने का अधिकार जनता को कितना होना चाहिए और क्या इस पॉलिसी से इस अधिकार का हनन हो सकता है।
प्रियंका गांधी का यूपी सरकार की सोशल मीडिया पॉलिसी पर हमला और महिलाओं की आवाज़ों को लेकर उठाया गया सवाल, उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक नए मोड़ की ओर इशारा करता है। यह देखना अब महत्वपूर्ण होगा कि सरकार प्रियंका गांधी के इन सवालों का कैसे जवाब देती है और क्या इस पॉलिसी में कोई बदलाव किया जाता है। इस मुद्दे पर देशभर की नजरें टिकी हुई हैं, क्योंकि यह सिर्फ उत्तर प्रदेश की राजनीति तक सीमित नहीं है, बल्कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक अधिकारों से जुड़ा एक बड़ा सवाल बन चुका है।