
राव साहब के अपने समर्थकों से मिलने में घबराने के पीछे कई संभावित कारण हो सकते हैं, जो पार्टी की आंतरिक राजनीति और उनकी व्यक्तिगत रणनीति से जुड़े हो सकते हैं। सबसे प्रमुख कारण यह हो सकता है कि उन्हें यह महसूस हो रहा हो कि पार्टी के भीतर टिकट वितरण के निर्णय में उनका प्रभाव अब उतना नहीं रहा जितना पहले हुआ करता था। ऐसे में यदि वे अपने समर्थकों से मिलते हैं, तो उन्हें ऐसे सवालों का सामना करना पड़ सकता है जिनका उत्तर देना उनके लिए मुश्किल हो सकता है, खासकर जब टिकट देने का अंतिम निर्णय उनके हाथ में न हो।
इसके अलावा, राव साहब की इस दूरी का एक और कारण यह हो सकता है कि वे किसी विवाद या टकराव से बचना चाहते हैं। यदि वे खुलकर अपने समर्थकों से मिलते हैं और किसी एक उम्मीदवार का समर्थन करते हैं, तो इससे पार्टी के भीतर अन्य गुटों के साथ टकराव की स्थिति पैदा हो सकती है। टिकट वितरण में उनकी भूमिका सीमित हो सकती है, और ऐसे में वे यह नहीं चाहते होंगे कि उनके समर्थक उनसे कोई ऐसी अपेक्षा रखें जो वे पूरी नहीं कर सकते। यह स्थिति उनके और पार्टी नेतृत्व के बीच अनावश्यक तनाव का कारण भी बन सकती है।
साथ ही, राव साहब यह भी समझते होंगे कि अगर वे अपने समर्थकों से दूरी बनाए रखते हैं, तो इससे वे किसी भी प्रकार के विवाद से बचे रह सकते हैं। पार्टी के भीतर टिकट वितरण को लेकर हो रही खींचतान में वे नहीं फंसना चाहते होंगे। संभवतः वे चाहते हैं कि जब तक टिकट का अंतिम निर्णय नहीं हो जाता, तब तक वे अपने समर्थकों से दूरी बनाए रखें, ताकि कोई भी उनके ऊपर दबाव न बना सके।
इन सभी कारणों को मिलाकर देखें, तो राव साहब का अपने समर्थकों से मिलने में घबराना या दूरी बनाए रखना एक सोच-समझी रणनीति हो सकती है। यह रणनीति उन्हें पार्टी के आंतरिक विवादों से दूर रखने, अपने प्रभाव को बचाए रखने, और अपने समर्थकों की उम्मीदों को नियंत्रित करने में मदद कर सकती है।
विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार, यह जानकारी सामने आ रही है कि राव इंद्रजीत सिंह, जिन्होंने 2014 और 2019 के चुनावों में कई नेताओं को टिकट दिलवाई थी, और जो विधायक और मंत्री बने थे, अब उन्हीं नेताओं की टिकट कटवाने का प्रयास कर रहे हैं। राव इंद्रजीत सिंह के इस कदम से पार्टी के भीतर हलचल मच गई है, और यह सवाल उठ रहा है कि वे किस रणनीति के तहत अपने पुराने समर्थकों को दरकिनार कर रहे हैं।
राव इंद्रजीत सिंह की राजनीति की विशेषता रही है कि वे जिस भी पार्टी में रहे हैं, उस पर अपने हितों को लेकर दबाव बनाने का प्रयास करते रहे हैं। जब वे कांग्रेस में थे, तब उन्होंने पार्टी नेतृत्व पर अपना दबाव बनाए रखा था। हालांकि, कांग्रेस में भी उनके इस दबाव का बहुत प्रभाव नहीं पड़ा।
अब भाजपा में शामिल होने के बाद भी राव इंद्रजीत सिंह उसी रणनीति पर काम कर रहे हैं। वे भाजपा नेतृत्व पर अपने समर्थकों को टिकट दिलाने और अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए दबाव बना रहे हैं। लेकिन, जैसा कि सूत्र बता रहे हैं, भाजपा में भी राव का यह दबाव काम करता हुआ नहीं दिख रहा है।
यह स्थिति संकेत देती है कि पार्टी नेतृत्व अब राव इंद्रजीत सिंह के प्रभाव को सीमित करने और टिकट वितरण में उनकी भूमिका को कम करने की दिशा में काम कर रहा है। इस बदलती राजनीतिक समीकरण के कारण, राव इंद्रजीत सिंह की स्थिति कमजोर हो रही है, और यह देखना दिलचस्प होगा कि वे इस स्थिति से कैसे निपटते हैं। उनके समर्थकों और विरोधियों दोनों के लिए आने वाले चुनावी सत्र में यह स्थिति महत्वपूर्ण होगी।