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राव इंद्रजीत सिंह की वर्तमान राजनीतिक स्थिति में जो घटनाक्रम सामने आ रहे हैं, वे यह संकेत देते हैं कि उनकी पार्टी के भीतर पकड़ कमजोर हो रही है। पटौदी विधानसभा क्षेत्र से राव इंद्रजीत सिंह ने अपने समर्थक बिमला के लिए भाजपा से टिकट की मांग की है। हालांकि, 2019 के विधानसभा चुनाव में, जब राव ने भाजपा के अधिकृत प्रत्याशी का विरोध किया था, तब भी वह प्रत्याशी विधायक बन गया था। इस घटना ने राव की राजनीतिक ताकत को कमजोर कर दिया था, और यह स्पष्ट हुआ कि पार्टी नेतृत्व ने उनके विरोध को नजरअंदाज कर दिया था।
मनोहर लाल खट्टर ने दक्षिणी हरियाणा में राव इंद्रजीत सिंह के प्रभाव को सीमित करने की रणनीति अपनाई है। यह रणनीति हरियाणा की पूरी राजनीति में भी देखी जा सकती है, जहां मुख्यमंत्री खट्टर ने कभी भी राव को पूरी तरह से अपना प्रभाव फैलाने का मौका नहीं दिया। राव इंद्रजीत सिंह की ओर से किए गए राजनीतिक दबाव को नजरअंदाज करते हुए, मनोहर लाल ने यह सुनिश्चित किया है कि राव की पकड़ धीरे-धीरे कमजोर हो।
इसके अलावा, नायब सिंह सैनी, जो मुख्यमंत्री खट्टर के विश्वासपात्र माने जाते हैं, भी राव इंद्रजीत सिंह से दूरी बनाए हुए हैं। इसका एक प्रमुख कारण यह है कि राव अपने से ऊपर किसी भी राजनीतिक नेता को नहीं मानते हैं। 2019 के विधानसभा चुनाव में, जिन भाजपा उम्मीदवारों का उन्होंने विरोध किया था, वे ही चुनाव जीत गए थे, और इसके बाद से राव का पार्टी में दबाव बनाने का प्रयास कम होता जा रहा है।
इस बार भी ऐसा ही प्रतीत हो रहा है कि भाजपा नेतृत्व राव के दबाव में नहीं आ रहा है। हालांकि, राव इंद्रजीत सिंह के समर्थक लगातार यह दावा कर रहे हैं कि भाजपा हरियाणा में राव के सहारे ही जीवित है, लेकिन वास्तविकता यह है कि पार्टी लगातार राव को यह एहसास दिला रही है कि उनका प्रभाव घटता जा रहा है।
इस परिदृश्य में, राव इंद्रजीत सिंह की राजनीतिक भविष्यवाणी पर सवाल उठना स्वाभाविक है। अगर पार्टी उनके समर्थकों को टिकट नहीं देती है, तो यह उनकी राजनीतिक पकड़ के और कमजोर होने का संकेत हो सकता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि वे और उनके समर्थक इस स्थिति से कैसे निपटते हैं, और क्या वे आने वाले चुनावों में कोई नई रणनीति अपनाते हैं।
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