
भिवानी विधानसभा सीट से जीत की हैट्रिक लगाने वाले घनश्याम सर्राफ एक बार फिर भाजपा प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में हैं। इस बार वें सीधे मुकाबले में न होकर तिकोने में फंस गए हैं। उनका मुकाबला आप पार्टी की इंदु शर्मा, कांग्रेस-सीपीएम गठबंधन के प्रत्याशी कामरेड ओम प्रकाश और निर्दलीय उम्मीदवार अभिजीत लाल सिंह से है। कांग्रेस ने अंतिम समय में ीिावानी की सीट गठबंधन के तहत सीपीएम को दे दी। कांग्रेस द्वारा भिवानी की सीट छोडऩे को लेकर राजनैतिक चर्चाकार अनेक कयास लगा रहे हैं। चर्चा है कि कांग्रेस के शीर्ष नेताओं को लगा कि भिवानी सीट पार्टी लगातार हारती आ रही है और इस बार भी कोई बड़ा चेहरा टिकट के लिए नहीं है। लेकिन भिवानी के जमीनी हालात इससे एकदम अलग थे। पता नहीं क्यो टिकटार्थी कांग्रेस आलाकमान और शीर्ष नेताओं को यह नहीं समझा पाए कि इस बार हालात बदले हुए हैं। अगर सही नेता को टिकट दी जाती तो यह सीट कांग्रेस की झोली में बड़ी आसानी से आ सकती थी।
लेकिन कांग्रेस आलाकमान ने इंडिया गठबंधन के तहत भिवानी की सीट सीपीएम को दे दी। अब इसका परिणाम यह हुआ कि भाजपा का पलड़ा स्वत: ही भारी हो गया। क्योकि भाजपा प्रत्याशी घनश्याम सर्राफ के सामने कोई बड़े जनाधार वाला चेहरा नहीं था। निर्दलीय प्रत्याशी अभिजीत लाल सिंह को कांग्रेस का टिकट नहीं मिला तो वें पार्टी से विद्रोह करके निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव में गए। शायद उनको राजपूत वोटों पर भरोसा है। बताना होगा कि नगर परिषद के चेयरमैन के चुनाव 2022 में खेला हुआ था कि भाजपा से विद्रोह कर भाजपा विधायक के विश्वसनीय भवानी प्रताप सिंह ने अपनी धर्मपत्नी प्रीति सिंह को निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में उतार दिया था। उस समय माहौल ऐसा बना कि क्षेत्र का पूरा राजपूत वोट एकजूट हो गया और माहौल बदल दिया। ऐसे में प्रीति भवानी सिंह बड़ी आसानी से नगर परिषद के चेयरमैन का चुनाव जीत गई। लेकिन इस बार विधानसभा चुनाव में माहौल ऐसा नहीं है। इसमें वोटों का अलग तरह से ध्रुवीकरण होगा। नगर परिषद चेयरमैन चुनाव में 21607 वोट लेकर दूसरे स्थान पर रहने वाली इंदु शर्मा इस चुनाव में आप पार्टी के प्रत्याशी के रूप में चुनावी मैदान में हैं। इंदु शर्मा खुद पिछड़े वर्ग से हैं और ससुराल पक्ष ब्राह्मण है तो उनको लगता है कि ब्राह्मण और पिछड़ा वर्ग का कॉम्बिनेशन उनको जीत दिला सकता है। वैसे इंदु शर्मा के ससुर डॉक्टर वासुदेव शर्मा 1987 में मुंढाल से विधायक रह चुके हैं और मंत्री भी बने थे। लेकिन इसके बाद का वें कोई चुनाव नहीं जीत पाए।
डॉक्टर वासुदेव शर्मा ने 2000 में विधानसभा का चुनाव लड़ा ओर उन्होंने 25130 वोट हासिल किए पर वें हरियाणा विकास पार्टी के मुखिया चौधरी बंसीलाल से चुनाव हार गए। फिर उन्होने 2005 में चुनाव लड़ा और 10713 वोट हासिल किए परन्तु कांग्रेस के डॉक्टर शंकर भारद्वाज से चुनाव हार गए। इसके बाद उन्होने 2009 का चुनाव भी लड़ा लेकिन वे भाजपा के घनश्याम सर्राफ से हार गए। उस समय उन्होने 18217 वोट हासिल किए थे। इस बार उन्होने कांग्रेस की टिकट के लिए आवेदन किया था परन्तु उनको टिकट नहीं मिल पाया और कांग्रेस ने भिवानी सीट चुनावी गठबंधन में सीपीएम को दे दी। भिवानी से अब कांग्रेस-सीपीएम का सांझा उम्मीदवार कामरेड ओम प्रकाश हैं। अब सीपीएम और चुनाव का प्रश्र है तो 2000 का विधानसभा चुनाव कामरेड कुलभूषण ने लड़ा था। उस समय उन्होंने केवल 788 वोट मिले थे। इसके बाद कामरेड विनोद ने सीपीएम उम्मीदवार के रूप में 2014 का चुनाव लड़ा था। उस समय उनको 1696 वोट मिले थे। इस 2024 के चुनाव में सीपीएम का प्रत्याशी कामरेड ओम प्रकाश हैं। यह उनका पहला चुनाव है।
इससे पहले उन्होने कोई भी चुनाव नहीं लड़ा। लेकिन वें बड़े ही कसावट के साथ चुनाव अभियान चला रहे हैं। कामरेड ओम प्रकाश को अपनी सहयोगी पार्टी कांग्रेस का अपेक्षित सहयोग अभी नहीं मिल पा रहा है। उनके चुनाव प्रचार पर कम्युनिस्ट पार्टी की छाप स्पष्ट दिखाई दे रही है। अभी कांग्रेस के स्थानीय नेता उनमें अपनी पृष्ठभूमि तलाश रहे हैं। लेकिन वे सर्वजाति का समर्थन मिलने का दावा कर रहे हैं। विपक्ष के ये तीनों प्रत्याशी ही अपना सीधा मुकाबला भाजपा के प्रत्याशी घनश्याम सर्राफ से मान रहे हैं। सर्राफ 2005 का अपना पहला चुनाव कांग्रेस के डॉक्टर शंकर भारद्वाज से हार गए थे। परन्तु फिर 2009, 2014 और 2019 के लगातार तीन चुनावों में विजयी रह कर जीत की हैट्रिक लगाई। अब पांचवीं बार घनश्याम सर्राफ फिर मैदान में है। देखना होगा कि क्या इस बार वें जीत का चौका लगा पाते हैं या नहीं?