हरियाणा में नेता विपक्ष पद छोड़ने को तैयार नहीं
नई दिल्ली, 28 अक्टूबर। हरियाणा में विपक्ष के नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा अपनी राजनीतिक ताकत को बनाए रखने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। चुनावों में कांग्रेस की हार के बाद ऐसा लग रहा था कि हुड्डा पीछे हट सकते हैं और पार्टी के भीतर नेतृत्व बदल सकता है। लेकिन उनके पुनः सक्रिय होने से यह साफ है कि हरियाणा में नेता विपक्ष पद छोड़ने को तैयार नहीं भूपेंद्र सिंह हुड्डा कांग्रेस में गुटबाजी बढ़ी हैं।
चुनाव परिणामों के कुछ दिनों तक, उनके हाशिये पर जाने की अटकलें लगाई जा रही थीं, लेकिन उन्होंने अपने परिवार और समर्थकों के साथ मिलकर एक बार फिर से राजनीतिक मैदान में कमर कस ली है। विधानसभा के हालिया सत्र में उनकी सक्रियता, स्पीकर चुनाव में उनकी उपस्थिति और सदन में उनके आत्मीय व्यवहार ने यह साबित कर दिया कि वह विपक्ष के नेता का पद छोड़ने के इच्छुक नहीं हैं।
शक्ति प्रदर्शन और कांग्रेस के भीतर हुड्डा की स्थिति
राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के दौरे के दौरान हुड्डा ने अपनी ताकत का प्रदर्शन किया, जब कांग्रेस के 37 में से 31 विधायक उनके आवास पर एकजुट हुए। यह हुड्डा की पकड़ और उनके प्रति समर्थन का स्पष्ट संकेत था। हुड्डा समर्थकों का मानना है कि हरियाणा में कांग्रेस को जो वोट मिला है, वह हुड्डा की लोकप्रियता का परिणाम है। उनके नेतृत्व में कांग्रेस ने लगभग 40% वोट हासिल किए और 37 सीटें जीतीं।
हुड्डा का भविष्य की योजना और उनके समर्थकों की रणनीति
हुड्डा गुट का मानना है कि वर्तमान भाजपा सरकार की जीत के पीछे तकनीकी हस्तक्षेप का बड़ा कारण है, और भविष्य में संभावित खुलासों के बाद राजनीतिक स्थिति में बदलाव आ सकता है। हुड्डा अपने बेटे दीपेंद्र हुड्डा के भविष्य के लिए भी यह पद बनाए रखना चाहते हैं, ताकि अगले चुनावों में उन्हें मुख्यमंत्री पद के लिए समर्थन मिल सके।
कांग्रेस में गुटबाजी: कुमारी सैलजा, सुरजेवाला, और अशोक तंवर की चुनौती
हुड्डा जानते हैं कि यदि उन्होंने नेतृत्व छोड़ा, तो कुमारी सैलजा, रणदीप सुरजेवाला और अशोक तंवर जैसे अन्य नेताओं का दबाव बढ़ सकता है। पार्टी में अलग-अलग गुटों के बीच बढ़ते तनाव को देखते हुए, हुड्डा अपने समर्थकों के साथ अपनी स्थिति को मजबूत बनाए रखना चाहते हैं।
अन्य नेताओं का दबाव बढ़ सकता है।
हरियाणा कांग्रेस में भूपेंद्र सिंह हुड्डा का प्रभाव अभी भी बरकरार है। वह विपक्ष के नेता के पद को छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं और अगले पांच साल तक लड़ाई लड़ने के लिए तैयार हैं। पार्टी में गुटबाजी और प्रतिस्पर्धा के बीच, हुड्डा की सक्रियता और उनकी राजनीतिक पकड़ ने यह संकेत दे दिया है कि हरियाणा कांग्रेस में उनका दबदबा आने वाले समय में भी बना रहेगा।