
भ्रष्टाचार के एक बड़े मामले ने लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा है
जयपुर, राजस्थान। राजस्थान में भ्रष्टाचार के एक बड़े मामले ने लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा है। सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के राजस्थान संवाद प्रोजेक्ट में 34 लाख रुपये के गबन का मामला सामने आया है, जिसमें विभाग के तत्कालीन अतिरिक्त निदेशक अरुण जोशी और उनकी बहन की कथित भूमिका बताई जा रही है।
गबन का खुलासा और जाँच का आदेश
इस गबन की शिकायत के बाद मुख्यमंत्री ने जाँच के आदेश दिए थे। परंतु आरोप है कि अरुण जोशी ने अपने पद का दुरुपयोग कर जाँच की कार्रवाई को ठंडे बस्ते में डालने का प्रयास किया। बताया जा रहा है कि इस गबन में अरुण जोशी की बहन की फर्म कल्चर एंड आर्ट एजुकेशन सोसायटी भी शामिल थी, जो कि फागी महाविद्यालय में ड्राइंग एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं।
सूचना एवं जनसंपर्क विभाग में अतिरिक्त निदेशक रहते हुए अरुण जोशी ने अपनी बहन की इस फर्म को विभागीय काम सौंपा और इसके लिए कथित तौर पर विभागीय खाते से लाखों रुपये का भुगतान करवाया। आरोप है कि उन्होंने अपनी बहन की फर्म को सरकारी खाते से लाखों रुपये गबन करने में मदद की।
घोटाले में वित्तीय सलाहकार की भूमिका
इस मामले में सिर्फ अरुण जोशी ही नहीं, बल्कि तत्कालीन वित्तीय सलाहकार की भूमिका भी संदेह के घेरे में है। आरोप है कि दोनों ने मिलकर मुख्यमंत्री से जाँच का आदेश आने के बावजूद इस पर कोई कार्रवाई नहीं होने दी। सरकारी फंड से गबन किए गए पैसों को ठिकाने लगाने और एफआईआर दर्ज न होने देने के आरोप में अरुण जोशी और वित्तीय सलाहकार की कथित मिलीभगत की जांच चल रही है।
गबन के खिलाफ पत्रकार की आवाज और जोशी का प्रतिशोध
इस घोटाले को लेकर एक पत्रकार ने जब खबर प्रकाशित की, तो अरुण जोशी ने पत्रकार के खिलाफ कार्रवाई करने की कोशिश की। उन्होंने निजी द्वेषता के कारण पत्रकार के समाचार पत्र की जांच करवाई। पत्रकार का दावा है कि अरुण जोशी ने अपने मरे हुए पिता के नाम से समाचार पत्र पंजीकृत कर रखा था, और इसी माध्यम से वे अन्य पत्रकारों को परेशान कर रहे थे। इस जाँच की कार्रवाई को जोशी के प्रतिशोधी रवैये के रूप में देखा जा रहा है, जिसमें उन्होंने अपने पद का दुरुपयोग किया।
जनता की गाढ़ी कमाई का गबन: क्या होगी सख्त कार्रवाई?
विभाग द्वारा इस मामले में चार्जशीट जारी की जा चुकी है, लेकिन यह देखना बाकी है कि सरकार और न्यायिक प्रणाली इस मामले में किस तरह की कार्रवाई करती है। विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं कि क्यों अब तक अरुण जोशी और उनकी बहन के खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं की गई है। राजस्थान की जनता अब सरकार से इस मामले में न्याय और सख्त कदम उठाने की मांग कर रही है।
सेवानिवृत्ति पर सेवा विस्तार का न मिलना
अरुण जोशी हाल ही में सेवानिवृत्त हुए हैं और उनके सेवा विस्तार के आवेदन को खारिज कर दिया गया है। बताया जा रहा है कि घोटाले में संलिप्तता और परिवार के सदस्य की फर्म का नाम सामने आने के कारण विभाग ने उन्हें सेवा विस्तार देने से मना कर दिया। जोशी की नीयत यह थी कि सेवानिवृत्ति के बाद उन्हें मीडिया कोर्डिनेटर का पद मिल जाए, लेकिन उनके कृत्यों की जानकारी विभाग को पहले से थी, इसलिए उनका आवेदन अस्वीकार कर दिया गया।
34 लाख रुपये के गबन में जिस तरह से अतिरिक्त निदेशक अरुण जोशी
राजस्थान संवाद के 34 लाख रुपये के गबन में जिस तरह से अतिरिक्त निदेशक अरुण जोशी और उनकी बहन की फर्म का नाम सामने आ रहा है, उससे विभाग में भ्रष्टाचार और मिलीभगत की पोल खुली है। यह मामला सरकार और प्रशासनिक अधिकारियों के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है। जनता की उम्मीदें न्यायिक प्रणाली से हैं कि वह इस गबन के दोषियों को सजा दिलाएगी और भविष्य में इस तरह के भ्रष्टाचार को रोकने के लिए ठोस कदम उठाएगी।