प्रदेश अध्यक्ष से लेकर भूपेंद्र सिंह हुड्डा और दीपेंद्र सिंह हुड्डा तक, किसी ने भी पार्टी की हार की बात स्वीकार नहीं की।
चंडीगढ़, 12 नवंबर: हरियाणा विधानसभा में विपक्ष का नेता बनने को लेकर कांग्रेस के भीतर एक नई लड़ाई शुरू हो गई है। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद, पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने विपक्ष का नेता बनने की इच्छा जताई है। हालांकि, कांग्रेस का राष्ट्रीय नेतृत्व उनके प्रति नाराजगी प्रकट कर रहा है, जिससे स्थिति जटिल हो गई है।
भूपेंद्र सिंह हुड्डा की स्थिति
खासकर चुनाव में उनकी लापरवाही के कारण।
भूपेंद्र सिंह हुड्डा हरियाणा में कांग्रेस की पुरानी पहचान और स्थापित नेता हैं, लेकिन पार्टी के भीतर हो रही विभिन्न गतिविधियों और चुनाव में मिली हार के चलते उनके नेतृत्व के प्रति अब कांग्रेस का राष्ट्रीय नेतृत्व संदेह में है। सूत्रों के अनुसार, राहुल गांधी और पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेता हुड्डा की रणनीतियों से संतुष्ट नहीं हैं, खासकर चुनाव में उनकी लापरवाही के कारण।
चंद्र मोहन बिश्नोई की संभावनाएं
मतलब होगा कि कांग्रेस ने पुराने नेताओं के स्थान पर युवा नेताओं को प्राथमिकता देने का निर्णय लिया है।
दूसरी ओर, चंद्र मोहन बिश्नोई, जो कि पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल के बेटे हैं, विपक्ष के नेता बनने की रेस में आगे बढ़ते दिख रहे हैं। उन्हें पार्टी के भीतर एक नई दिशा देने और युवा नेतृत्व के दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक उत्तम विकल्प माना जा रहा है। यदि बिश्नोई को विपक्ष का नेता नियुक्त किया जाता है, तो इसका मतलब होगा कि कांग्रेस ने पुराने नेताओं के स्थान पर युवा नेताओं को प्राथमिकता देने का निर्णय लिया है।
इशारों में तनाव
दोनों ने कांग्रेस प्रत्याशियों की अपेक्षा अपने करीबी लोगों को मैदान में उतारा,
सूत्रों का कहना है कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ-साथ उनके बेटे सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा के खिलाफ भी नाराजगी की भावना है। कहा जा रहा है कि चुनाव के समय टिकट बंटवारे में अनियमितताओं और पारिवारिक प्राथमिकताओं ने पार्टी की स्थिति को कमजोर किया। कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व को यह भी ज्ञात हुआ है कि दोनों ने कांग्रेस प्रत्याशियों की अपेक्षा अपने करीबी लोगों को मैदान में उतारा, जिससे पार्टी का प्रदर्शन प्रभावित हुआ।
कोई जिम्मेदारी नहीं लेने की स्थिति
यह एक अजीब स्थिति है कि हरियाणा के कांग्रेस नेताओं ने अपनी हार की जिम्मेदारी नहीं ली। प्रदेश अध्यक्ष से लेकर भूपेंद्र सिंह हुड्डा और दीपेंद्र सिंह हुड्डा तक, किसी ने भी पार्टी की हार की बात स्वीकार नहीं की। इसके बजाय, वे विधानसभा में विपक्ष के नेता बनने की होड़ में लगे हुए हैं।
वक्त ही बताएगा कि क्या कांग्रेस अपनी आंतरिक कलह को सुलझा पाएगी या फिर यह समस्या और बढ़ेगी।
अब देखना यह है कि हरियाणा में हुड्डा गुट की ताकत बनी रहती है या कांग्रेस का राष्ट्रीय नेतृत्व अपनी बात आगे बढ़ाता है। यदि कांग्रेस को अपनी स्थिति मजबूत करनी है, तो उसे एक स्पष्ट और समर्पित विपक्ष का नेता चुनना होगा, जो पार्टी को एकजुट करे और आगामी चुनावों में बेहतर प्रदर्शन सुनिश्चित करे। वक्त ही बताएगा कि क्या कांग्रेस अपनी आंतरिक कलह को सुलझा पाएगी या फिर यह समस्या और बढ़ेगी।