
नीतीश कुमार और भाजपा का पारंपरिक लव कुश समीकरण भी कमजोर
बिहार, 13 नवंबर – बिहार के उपचुनावों में इस बार एक नई राजनीतिक हलचल देखने को मिल रही है, जिसमें प्रशांत किशोर की जन सुराज पहल ने राजद और जदयू को चौकस कर दिया है। बिहार में इस समय जातीय समीकरणों में एक बड़ा बदलाव हो रहा है, जिससे दोनों प्रमुख दलों को अपनी पारंपरिक वोटबैंक को लेकर चिंता सताने लगी है। लोकसभा चुनावों में जो जातिगत समीकरण दिखे थे, वो अब टूटते हुए नजर आ रहे हैं, जिससे बिहार की राजनीति में नया ट्रेंड बन सकता है।
लोकसभा चुनावों में छह सीटों पर यादव समुदाय ने भाजपा को समर्थन दिया
इस साल के लोकसभा चुनावों में छह सीटों पर यादव समुदाय ने भाजपा को समर्थन दिया, तो वहीं भूमिहार समुदाय ने राजद और कांग्रेस के उम्मीदवारों को वोट दिया। इसके साथ ही नीतीश कुमार और भाजपा का पारंपरिक लव कुश समीकरण भी कमजोर हुआ, क्योंकि करीब पांच सीटों पर कुशवाहा वोट बैंक ने भाजपा और जदयू को छोड़कर राजद, कांग्रेस और सीपीआई माले को अपना समर्थन दिया। इसी तरह, वैश्य समुदाय ने भी भाजपा को छोड़कर राजद और माले को वोट किया।
जातीय वोटबैंक अब पहले जैसे मजबूत नहीं रहे।
बिहार के उपचुनावों में यह नया ट्रेंड साफ तौर पर देखने को मिल रहा है, जहां जातीय वोटबैंक अब पहले जैसे मजबूत नहीं रहे। यह बदलाव राज्य की राजनीति के लिए एक महत्वपूर्ण संकेत है, क्योंकि वोटरों के लिए अब पार्टी से ज्यादा उम्मीदवार की छवि और नीतियां मायने रखने लगी हैं।
रामगढ़ और बेलागंज सीटों पर मुकाबला:
बिहार की चार विधानसभा उपचुनाव सीटों में सबसे महत्वपूर्ण सीट रामगढ़ की मानी जा रही है, जहां राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के बेटे अजीत सिंह चुनावी मैदान में हैं। यह सीट जगदानंद सिंह के बेटे सुधाकर सिंह के बक्सर से सांसद बनने के कारण खाली हुई है। रामगढ़ में राजद के पुराने नेता अंबिका यादव के बेटे विनोद यादव बसपा से चुनाव लड़ रहे हैं, और यादव समुदाय के वोट एकजुट होकर उन्हेें मिल रहे हैं। इस कारण राजद के लिए यह सीट जीतना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
यादव वोटों का बंटवारा इस सीट पर भी अहम भूमिका निभा सकता है।
वहीं, बेलागंज सीट पर भी एक दिलचस्प मुकाबला हो रहा है, जहां राजद के बाहुबली नेता और जहानाबाद के सांसद सुरेंद्र यादव के बेटे विश्वनाथ यादव चुनाव लड़ रहे हैं। यहां जदयू ने टिकट देकर मनोरमा देवी को मैदान में उतारा है, जो बिंदी यादव की पत्नी और रॉकी यादव की मां हैं। यादव वोटों का बंटवारा इस सीट पर भी अहम भूमिका निभा सकता है।
मुस्लिम वोटों पर खतरा:
उपचुनाव में मुस्लिम वोट बैंक भी एक चिंता का विषय बन गया है।
राजद और तेजस्वी यादव के लिए इस उपचुनाव में मुस्लिम वोट बैंक भी एक चिंता का विषय बन गया है। प्रशांत किशोर ने जन सुराज के तहत मुस्लिम उम्मीदवारों को उतारा है, जिससे मुसलमानों का एक हिस्सा अब राजद के बजाय जन सुराज की ओर रुख कर सकता है। इससे राजद का पारंपरिक मुस्लिम-यादव (माई) समीकरण बिखरता हुआ नजर आ रहा है, जो पार्टी के लिए एक बड़ा झटका हो सकता है।
यह बदलाव स्थिर रहता है, तो यह पारंपरिक दलों के लिए एक बड़ा सिरदर्द बन सकता है,
बिहार के उपचुनावों में जातीय समीकरणों का बदलता हुआ ट्रेंड और प्रशांत किशोर के प्रभाव के कारण बिहार की राजनीति में महत्वपूर्ण बदलाव आ सकता है। यह उपचुनाव सिर्फ एक क्षेत्रीय चुनाव नहीं, बल्कि आने वाले समय में बिहार के राजनीतिक परिदृश्य को आकार देने वाला हो सकता है। यदि यह बदलाव स्थिर रहता है, तो यह पारंपरिक दलों के लिए एक बड़ा सिरदर्द बन सकता है, क्योंकि जातिवाद से ऊपर उठकर अब वोटर अपनी प्राथमिकताएं तय कर रहे हैं।
बिहार की राजनीति में यह परिवर्तन इस बात को साबित करता है कि अब पार्टी और नेता दोनों के लिए अपने वोटबैंक को संभालना आसान नहीं रहेगा।