
नई दिल्ली, जयपुर, राजस्थान – 23 नवंबर: 23 नवंबर को राजस्थान के देवली-उनियारा विधानसभा उपचुनाव के परिणाम ने कांग्रेस के लिए एक बड़ा झटका दिया है, क्योंकि इस सीट पर बीजेपी ने जीत दर्ज की है। बीजेपी के उम्मीदवार राजेंद्र गुर्जर ने 41,121 वोटों से विजय प्राप्त की, जबकि कांग्रेस के उम्मीदवार कस्तूर चंद मीणा और निर्दलीय उम्मीदवार नरेश मीणा को क्रमशः 31,295 और 59,478 वोट मिले। बीजेपी की इस जीत को 2013 के बाद पहली बार माना जा रहा है, जब इस सीट पर पार्टी ने काबिज़ हुई है।
उपचुनाव में बवाल और विवाद:
आगजनी, पत्थरबाजी और हाईवे जाम की घटनाएँ सामने आईं।
इस उपचुनाव में कई विवादों ने जन्म लिया। सबसे प्रमुख विवाद था नरेश मीणा द्वारा SDM (सब डिवीजनल मजिस्ट्रेट) को थप्पड़ मारने का, जो समरावता गांव में हुआ। इस घटना के बाद, नरेश मीणा को गिरफ्तार करने के प्रयासों के दौरान उनके समर्थकों ने जमकर विरोध किया, जिसमें आगजनी, पत्थरबाजी और हाईवे जाम की घटनाएँ सामने आईं। यह घटना सोशल मीडिया और मीडिया में सुर्खियाँ बन गई, और चुनाव के दौरान एक बड़ा विवाद बनकर उभरी।
कांग्रेस में गुटबाजी का असर:
अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच चल रहे विवादों का असर इस उपचुनाव पर
राजस्थान में कांग्रेस के भीतर की गुटबाजी, खासकर अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच चल रहे विवादों का असर इस उपचुनाव पर भी पड़ा। नरेश मीणा को टिकट न दिए जाने की वजह से उनका विरोध खुलकर सामने आया। नरेश मीणा का टिकट कटने का कारण माना जा रहा है कि यह गुटबाजी का परिणाम था, जिसमें गहलोत गुट ने हरीश मीणा को उम्मीदवार बनाया, जो कांग्रेस के अंदर ही एक और विवाद का कारण बन गया।
क्या कांग्रेस ने गलती की?
नरेश मीणा को टिकट दिया होता तो शायद यह विवाद
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि अगर कांग्रेस ने नरेश मीणा को टिकट दिया होता तो शायद यह विवाद और हिंसा न होती, और परिणाम भी कांग्रेस के पक्ष में जा सकते थे। नरेश मीणा का टिकट कटना कांग्रेस के लिए भारी पड़ा, क्योंकि यह न केवल पार्टी की गुटबाजी का प्रतीक था, बल्कि इससे पार्टी के चुनावी परिणाम पर भी प्रतिकूल असर पड़ा।
बीजेपी ने इस विवाद का लाभ उठाया और देवली-उनियारा सीट पर विजय प्राप्त की, जबकि कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा।
कांग्रेस को अपने उम्मीदवारों के चयन में सावधानी बरतनी होगी
इस उपचुनाव ने कांग्रेस को यह स्पष्ट संदेश दिया है कि उसे अपनी अंदरूनी गुटबाजी को खत्म कर एकजुट होकर आगामी चुनावों में रणनीति बनानी होगी। अगर कांग्रेस को अपनी राजनीति में फिर से मजबूती लानी है, तो उसे अपने उम्मीदवारों के चयन में सावधानी बरतनी होगी और पार्टी के भीतर के संघर्षों को सुलझाना होगा।