
साधु-संत और उच्च शिक्षा
प्रयागराज के महाकुंभ 2025 में हर प्रकार के साधु-संत शामिल हो रहे हैं। इन संतों में से कई के पास सामान्य व्यक्तियों से अधिक शैक्षणिक योग्यता है। इन्हीं में से एक हैं संत डॉक्टर योगानंद गिरी, जिन्होंने अपने जीवन को अध्यात्म और ज्ञान दोनों के लिए समर्पित किया है।
धर्म और विज्ञान पर शोध
संत योगानंद गिरी, जो श्री पंचदस नाम जूना अखाड़ा के सदस्य हैं, ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) से धर्म और विज्ञान विषय पर पीएचडी की है। उन्होंने इस दौरान यह सिद्ध किया कि धर्म और विज्ञान एक-दूसरे के पूरक हैं। उनका मानना है कि “धर्म के बिना विज्ञान और विज्ञान के बिना धर्म अधूरा है।” इसके अलावा उन्होंने धर्म विज्ञान में परास्नातक (एमए) की डिग्री भी प्राप्त की है।
साधु जीवन और शिक्षा का संतुलन
संत योगानंद गिरी का जीवन इस बात का प्रमाण है कि आध्यात्मिक साधना और शैक्षणिक उपलब्धि एक साथ संभव हैं। उनका मानना है कि केवल भौतिक दुनिया में विज्ञान सब कुछ नहीं है। अध्यात्म के बिना जीवन अधूरा है। उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा को आध्यात्मिक ज्ञान के प्रसार का माध्यम बनाया।
महाकुंभ में संतों की भूमिका
महाकुंभ में संतों की उपस्थिति इस बात का प्रतीक है कि वे केवल साधना तक सीमित नहीं रहते, बल्कि समाज के लिए प्रेरणा भी बनते हैं। डॉक्टर योगानंद गिरी जैसे संत अपने ज्ञान और अनुभव से यह संदेश देते हैं कि धर्म और विज्ञान का मेल समाज को नई दिशा दे सकता है।
महाकुंभ 2025: ज्ञान, साधना और संस्कृति का संगम
महाकुंभ जैसे आयोजन भारत की संस्कृति और अध्यात्म का प्रतीक हैं, जहां संत और महात्मा समाज को नई दृष्टि देते हैं। संत योगानंद गिरी जैसे विद्वान संत बताते हैं कि शिक्षा और साधु जीवन एक साथ चलते हैं।