भतीजे अभिषेक बनर्जी के बीच की आंतरिक खींचतान
नई दिल्ली, 6 दिसंबर: पश्चिम बंगाल की राजनीति में भाजपा और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के बीच का संघर्ष अब दूसरी प्राथमिकता पर नजर आ रहा है। राज्य में भाजपा भले ही मुख्य विपक्षी दल के तौर पर उभरी हो, लेकिन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी उनके प्रभाव को ज्यादा महत्व नहीं देतीं। इसके बजाय, राज्य की राजनीति का केंद्र अब ममता बनर्जी और उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी के बीच की आंतरिक खींचतान बन गया है।
टीएमसी के अंदर बढ़ती गुटबाजी
तृणमूल कांग्रेस इन दिनों दो खेमों में बंटी हुई नजर आ रही है—एक खेमे का नेतृत्व ममता बनर्जी कर रही हैं, जबकि दूसरे खेमे का प्रतिनिधित्व अभिषेक बनर्जी कर रहे हैं। यह गुटबाजी न केवल पार्टी संगठन तक सीमित है, बल्कि राज्य सरकार के प्रशासनिक ढांचे में भी दिख रही है।
- समर्थकों की पहचान स्पष्ट: पार्टी के भीतर ममता और अभिषेक दोनों के समर्थकों की पहचान अब सार्वजनिक हो चुकी है।
- आपसी संघर्ष: दोनों खेमों के नेता एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते रहते हैं, जिससे पार्टी के भीतर असंतोष बढ़ रहा है।
अणुब्रत मंडल का मुद्दा
पिछले दिनों टीएमसी नेता अणुब्रत मंडल के जेल से रिहा होने के बाद बीरभूम जिले में उनकी पकड़ मजबूत करने के लिए प्रशासन द्वारा समर्थन की खबरें सामने आईं।
- बताया गया कि अणुब्रत मंडल के लिए स्थानीय कलेक्टर ने भूमिका निभाई।
- इस मामले पर ममता बनर्जी ने कलेक्टर को फटकार लगाई, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि प्रशासनिक स्तर पर भी खींचतान जारी है।
आरजी कर अस्पताल कांड
आरजी कर अस्पताल में एक जूनियर डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या की घटना ने राज्य को झकझोर दिया।
- इस घटना के बाद टीएमसी से जुड़ी सांस्कृतिक हस्तियों द्वारा प्रदर्शनों में भाग लेने के कारण ममता बनर्जी के खेमे ने इन हस्तियों का बहिष्कार करने की नीति अपनाई।
- हालांकि, अभिषेक बनर्जी इस फैसले के विरोध में खड़े हो गए।
- पार्टी के आधिकारिक प्रवक्ता ने भी अभिषेक की राय के विपरीत बयान दिया, जिससे आंतरिक दरारें और गहरी हो गईं।
अभिषेक बनर्जी का कद और ममता की रणनीति
अभिषेक बनर्जी को अक्सर टीएमसी का दूसरा सबसे प्रभावशाली नेता माना जाता है। लेकिन पार्टी के भीतर उनके कद को लेकर कई सवाल खड़े हो रहे हैं।
दो प्रमुख थ्योरी:
- बुजुर्ग नेताओं को खुश रखना:
ममता बनर्जी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का समर्थन बनाए रखना चाहती हैं। इसलिए, अभिषेक को समय-समय पर नियंत्रित करने की रणनीति अपनाई जाती है। - आंतरिक विरोध का खेल:
ममता बनर्जी ने जानबूझकर पार्टी और सरकार में ऐसा माहौल तैयार किया है, जिससे अभिषेक को उनके ही खेमे में प्रतिद्वंद्विता का सामना करना पड़े। इससे टीएमसी के भीतर विपक्ष का स्पेस भी उनके नियंत्रण में रहता है।
भाजपा की स्थिति
भाजपा, जो राज्य में मुख्य विपक्षी दल है, ममता और अभिषेक के बीच चल रही इस आंतरिक राजनीति का फायदा उठाने की कोशिश कर रही है। लेकिन ममता बनर्जी की रणनीति यह सुनिश्चित कर रही है कि विपक्षी स्पेस भी टीएमसी के भीतर ही सीमित रहे।
- भाजपा को शहरी और ग्रामीण इलाकों में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।
- ममता बनर्जी का यह राजनीतिक दांव भाजपा की रणनीतियों को कमजोर करने में कारगर साबित हो रहा है।
- ममता बनर्जी बनाम अभिषेक बनर्जी की लड़ाई पर केंद्रित है।
पश्चिम बंगाल की राजनीति इस समय भाजपा बनाम टीएमसी की बजाय ममता बनर्जी बनाम अभिषेक बनर्जी की लड़ाई पर केंद्रित है। ममता अपनी राजनीतिक कुशलता से पार्टी और सरकार दोनों पर नियंत्रण बनाए हुए हैं। लेकिन यह गुटबाजी पार्टी के भविष्य के लिए गंभीर चुनौती बन सकती है।
यह देखना दिलचस्प होगा कि टीएमसी की इस आंतरिक लड़ाई का भाजपा और राज्य की राजनीति पर क्या असर पड़ता है।