
जहाँ बापू की खड़ाऊँ गूंजती है, वहाँ जन जागरण की धुन है।”
अहमदाबाद, 9 अप्रैल: साबरमती की पवित्र भूमि से एक नया सन्देश गूंज रहा है, जो देश की जनता की जागरूकता और संघर्ष की अनकही कहानी है। यह कविता एक आंदोलन का प्रतीक है, जो अब सत्ता के विरोध में खड़ा है, और जिसमें सत्य, न्याय, और संविधान की रक्षा के लिए दृढ़ संकल्प व्यक्त किया गया है।
क्रांति की लहर:
“साबरमती की लहरों में फिर क्रांति की रुनझुन है,
जहाँ बापू की खड़ाऊँ गूंजती है, वहाँ जन जागरण की धुन है।”
यह पंक्तियाँ हमें याद दिलाती हैं कि साबरमती का तट केवल ऐतिहासिक स्थल नहीं है, बल्कि यह राष्ट्र की आत्मा, संघर्ष और बदलाव की प्रतीक है। यहाँ से उठी आवाज़ उस सत्य और साहस की राह पर चलने की प्रेरणा दे रही है, जो देश को फिर से एक सही दिशा में ले जाएगी।
गुजरात के मॉडल की सच्चाई:
“गुजरात का वो मॉडल झूठा, जो सपनों को निगल गया,
विकास की ओट में जो छल था, हर घर को वो छल गया।”
यह पंक्तियाँ राज्य के तथाकथित विकास मॉडल पर प्रहार करती हैं, जो विकास के नाम पर जनता को भ्रमित करने का काम कर रहा था। गरीबों और आम लोगों की स्थिति को नजरअंदाज करके सत्ता ने अपनी साख को बढ़ाया था, लेकिन अब वक्त आ गया है कि जनता इसे समझे और इसका मुकाबला करे।
महँगाई और गरीबी की स्थिति:
“महँगाई की आँच में माँ की रोटी जल रही,
बाज़ार में हर मुस्कान अब किस्तों पर पल रही।”
यह पंक्तियाँ आम जनता की दुखदाई स्थिति को चित्रित करती हैं, जहाँ महँगाई और आर्थिक असमानता ने उनके जीवन को कठिन बना दिया है। हर घर का चूल्हा जलता है, लेकिन इसे जलाने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। इस परिदृश्य में सत्ता और विकास के झूठ को उजागर किया जा रहा है।
जनता का हुंकार:
“साबरमती से फिर जनता की हुंकारी फूटी है,
ये गुजरात अब बोलेगा — सच का फिर से राग बजेगा।”
यह पंक्तियाँ जन जागरण और संघर्ष के लिए एक आह्वान हैं। जनता अब चुप नहीं रहेगी। वह अपने हक के लिए खड़ी होगी और सत्ता के खिलाफ आवाज उठाएगी। यहाँ तक कि गुजरात, जो राजनीति का केंद्र है, अब सत्य और भाईचारे की बात करेगा, और नफ़रत की दीवारों को गिराएगा।
संविधान और बाबा साहेब की रक्षा:
“अंग्रेज़ गए, पर जंग अब भी जारी है,
संविधान पर वार आज की सत्ता की लाचारी है।”
यह पंक्तियाँ बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर द्वारा बनाए गए संविधान की रक्षा की आवश्यकता को प्रमुखता से उजागर करती हैं। संविधान, जो हमारे अधिकारों और स्वतंत्रता की रक्षा करता है, पर आज सत्ता द्वारा हमला किया जा रहा है। लेकिन कांग्रेस पार्टी और जनता मिलकर इसका विरोध करेगी और संविधान को हर हाल में बचाएगी।
अंतिम संदेश:
“लहू देंगे, जान देंगे — मगर झुकेंगे नहीं,
संविधान की रक्षा में — हम रुकेंगे नहीं!”
यह अंतिम पंक्तियाँ कांग्रेस पार्टी और उसके कार्यकर्ताओं की दृढ़ निष्ठा और संकल्प को दर्शाती हैं। वे हर संघर्ष में साथ खड़े रहेंगे और किसी भी हालत में संविधान की रक्षा करेंगे। यह केवल एक कविता नहीं है, बल्कि यह जनता का ऐलान है, जो एक नए भारत की दिशा में बढ़ रहा है।
यह कविता जनता के संघर्ष, सत्य की खोज और संविधान की रक्षा के लिए उठी आवाज़ का प्रतीक है। यह केवल एक राजनीतिक बयान नहीं है, बल्कि देशवासियों के लिए एक प्रेरणा है कि वे अपने अधिकारों के लिए लड़ें, सच्चाई की राह पर चलें और किसी भी दबाव के सामने झुकने की बजाय, अपने अधिकारों की रक्षा करें।