
✍️ लेख: भारत में वक्फ बोर्ड और उसके नए संशोधनों पर एक व्यापक रिपोर्ट
भारत में जब भी कोई बड़ा विधेयक लोकसभा में पेश होता है, तो उसके साथ विरोध की आंधी भी चलती है। धारा 370 हटाई गई—विरोध हुआ, CAA लागू हुआ—विरोध हुआ, और अब UCC (यूनिफॉर्म सिविल कोड) की बात चल रही है तो फिर से विरोध सामने आया है। तो सवाल उठता है कि क्या हर विरोध का आधार केवल विचारधारात्मक है या देश में स्वस्थ लोकतंत्र के लिए एक मज़बूत विपक्ष का होना ज़रूरी है?
इन तमाम बहसों के बीच वक्फ बोर्ड फिर से चर्चा में है। हाल ही में वक्फ अधिनियम में संशोधन को लेकर विपक्ष ने कड़ी आपत्ति जताई है। लेकिन इस मुद्दे पर राय बनाने से पहले यह जानना ज़रूरी है कि वक्फ बोर्ड होता क्या है?, इसका इतिहास क्या है?, और इस पर विवाद क्यों हो रहा है?
वक्फ क्या है?
वक्फ (Waqf) इस्लाम में दान की एक विशेष व्यवस्था है, जिसमें कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति जनकल्याण के लिए समर्पित करता है। इस संपत्ति का उपयोग स्कूल, मस्जिद, कब्रिस्तान, अनाथालय या अस्पताल बनाने के लिए किया जाता है। वक्फ दाता को “वाकिफ” कहा जाता है।
दान की गई संपत्ति में जमीन, घर, दुकान, वाहन, यहां तक कि घरेलू सामान तक शामिल हो सकते हैं। यह संपत्ति फिर वक्फ बोर्ड के अधीन आ जाती है, जो यह सुनिश्चित करता है कि इसका सही उपयोग हो।
वक्फ कानून का इतिहास
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1947 के बाद देश में वक्फ संपत्तियों को लेकर कानूनी ढांचा तैयार करने की आवश्यकता महसूस हुई।
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1954 में पहला वक्फ अधिनियम बनाया गया और इसके तहत वक्फ बोर्ड की स्थापना की गई।
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1955 में इस अधिनियम में संशोधन कर राज्यों के लिए अलग-अलग वक्फ बोर्ड बनाने का प्रावधान किया गया।
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1995 में नया वक्फ अधिनियम लागू किया गया, जिसे 2013 में संशोधित किया गया।
वक्फ बोर्ड का ढांचा
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सेंट्रल वक्फ काउंसिल केंद्र सरकार को सलाह देती है।
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हर राज्य में एक सुन्नी और एक शिया वक्फ बोर्ड होता है।
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बोर्ड में केवल मुस्लिम समुदाय के विधायक, सांसद, वकील, आईएएस अधिकारी आदि ही होते हैं।
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संपत्तियों की निगरानी के लिए एक सर्वे कमिश्नर होता है।
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वक्फ संपत्ति से जुड़े विवादों को सुलझाने के लिए वक्फ ट्रिब्यूनल की व्यवस्था भी है।
भारत में वक्फ संपत्तियाँ
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भारत में वक्फ बोर्ड के पास करीब 8.72 लाख संपत्तियाँ हैं।
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ये संपत्तियाँ लगभग 8 लाख एकड़ ज़मीन पर फैली हैं।
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संपत्ति के मामले में रेलवे और रक्षा बलों के बाद वक्फ बोर्ड तीसरे स्थान पर आता है।
वक्फ अधिनियम में क्या हैं समस्याएँ?
सरकार का कहना है कि 1995 और 2013 के अधिनियम प्रभावी नहीं रहे। मुख्य समस्याएं:
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वक्फ भूमि पर अवैध कब्जा।
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संपत्ति पंजीकरण और सर्वे में देरी।
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बड़ी संख्या में मुकदमे और शिकायतें।
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वक्फ ट्रिब्यूनल के फैसलों को हाई कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती थी।
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धारा 40 का दुरुपयोग कर निजी संपत्तियों को वक्फ घोषित किया गया।
नया संशोधन क्या कहता है?
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धारा 40 को हटा दिया गया है — यानी अब वक्फ बोर्ड के पास यह शक्ति नहीं रहेगी कि वह किसी भी संपत्ति को “रिजन टू बिलीव” के आधार पर वक्फ घोषित कर दे।
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अब 2 गैर-मुस्लिम और 2 महिला सदस्य बोर्ड में अनिवार्य होंगे।
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वक्फ ट्रिब्यूनल के फैसलों के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील की जा सकेगी — 90 दिनों के भीतर।
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सरकारी संपत्तियों पर यदि वक्फ का दावा है, तो निर्णय कलेक्टर लेंगे, वक्फ बोर्ड नहीं।
विपक्ष का विरोध क्यों?
विपक्षी दलों का कहना है कि:
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यह विधेयक मुस्लिमों की धार्मिक आज़ादी पर हमला है।
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इसका उद्देश्य वक्फ की संपत्तियों पर कब्जा करना है।
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इसे तानाशाही तरीके से लाया गया है, और यह संविधान के खिलाफ है।
तो असली मुद्दा क्या है?
विवाद की जड़ है वक्फ एक्ट की धारा 40, जिसके चलते कई बार वक्फ बोर्ड ने निजी या विवादित संपत्तियों को वक्फ घोषित कर दिया। इससे सामाजिक तनाव और आपसी टकराव भी बढ़ा है।
वक्फ एक पवित्र परंपरा है, लेकिन जब उसका कानूनी ढांचा पुराना या भ्रष्टाचारग्रस्त हो जाए, तो संशोधन जरूरी हो जाता है। सरकार की कोशिश है कि वक्फ बोर्ड की पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाई जाए। लेकिन विपक्ष का तर्क है कि यह मुसलमानों के अधिकारों पर सीधा हमला है।
अब देखना यह है कि क्या यह संशोधन सुधार की दिशा में एक कदम साबित होगा या फिर एक और राजनीतिक विवाद का कारण बनेगा।