कबीर की शिक्षा:
सच्चे अपनों की पहचान उनके कर्मों से होती है, न कि शब्दों से।
आज भी इस शिक्षा का पालन करके हम अपनी जिंदगी को बेहतर और सार्थक बना सकते हैं।
चंडीगढ़, 11 अप्रैल 2025 ,
आज के समय में जहां लोग दिखावा और शोर-शराबे के साथ अपनी पहचान बनाने की कोशिश करते हैं, वहीं महान संत कबीर साहब ने सच्चे अपनापन और रिश्तों की अहमियत पर गहरी बात की थी। उनका मानना था कि सच्चे अपनों की पहचान उनके कर्मों से होती है, न कि शब्दों से।
कबीर साहब ने कहा था, “हे भाई, अपने कभी अपने होने का शोर नहीं मचाते। वे बस मुश्किलों में साथ खड़े हो जाते हैं।” यह वाक्य सच्चे रिश्तों और मित्रता की परिभाषा को सरलता से समझाता है। कबीर के अनुसार, जो व्यक्ति किसी के दुख-दर्द में बिना किसी शोर के साथ खड़ा रहता है, वही असली मित्र और भाई है।
कबीर के विचारों का आज भी असर
कबीर के इस संदेश का आज भी समाज पर गहरा प्रभाव है। उन्होंने अपने समय में लोगों को दिखावा, स्वार्थ और ईगो से दूर रहकर जीवन जीने का मार्ग दिखाया था। उनका कहना था कि जो लोग दूसरों की मदद बिना किसी उम्मीद के करते हैं, वही असली मानवता का पालन करते हैं।
कबीर साहब की इस शिक्षा को आज के समाज में भी लागू किया जा सकता है, जहां रिश्तों की अहमियत दिनों-दिन घट रही है। हर व्यक्ति के जीवन में ऐसे लोग होते हैं जो हर वक्त उनके साथ होते हैं, लेकिन उन लोगों की पहचान मुश्किल घड़ी में होती है, जब कोई और साथ छोड़ जाता है।
कबीर का आदर्श
कबीर साहब के इस संदेश का पालन करके हम अपनी जिंदगी में सच्चे रिश्ते और दोस्ती बना सकते हैं। उनकी शिक्षा यह भी सिखाती है कि दूसरों के साथ खड़ा होना ही असली अपनापन है, और इसे किसी प्रदर्शन या शोर-शराबे की आवश्यकता नहीं होती।
आज के ज़माने में, जहां लोग दिखावे और प्रतिस्पर्धा में खोए रहते हैं, कबीर साहब का यह संदेश हमें अपने आचरण और रिश्तों की असलियत को समझने की प्रेरणा देता है।
कबीर साहब ने हमें यह सिखाया कि सच्चे रिश्ते शोर मचाने में नहीं, बल्कि मुश्किलों में साथ देने में निहित होते हैं। आज भी इस शिक्षा का पालन करके हम अपनी जिंदगी को बेहतर और सार्थक बना सकते हैं।