
हरियाणा में सेमग्रस्त भूमि की समस्या
रोहतक 12 अप्रैल 2025,
🧾 मुख्य मुद्दे का सारांश:
🔴 सेमग्रस्त भूमि (Waterlogging/Sodicity) की स्थिति:
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हरियाणा में 9.28 लाख एकड़ भूमि सेमग्रस्त है — यानी राज्य की लगभग 9% कृषि योग्य भूमि।
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बीते 24 वर्षों में केवल 28,100 एकड़ का सुधार हुआ है, जबकि 2022 में नई योजना के अंतर्गत 1 लाख एकड़ का लक्ष्य तय किया गया।
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अभी तक मात्र 28,250 एकड़ का सुधार (सरकारी दावा) किया गया है — यानी कुल समस्या का सिर्फ 3% समाधान।
🌾 प्रभावित जिले:
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सर्वाधिक सेमग्रस्त ज़िले:
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रोहतक: 61.47%
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झज्जर: 40.77%
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सोनीपत: 32.95%
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भिवानी: 13.19%
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जबकि धान उत्पादन वाले जिले (जैसे करनाल, कुरुक्षेत्र, यमुनानगर) इस समस्या से लगभग मुक्त हैं।
🏞 समस्या की जड़: नहर जल वितरण में पक्षपात
📉 जल वितरण में असमानता:
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भाखड़ा और यमुना नहर प्रणाली के अंतर्गत 23.04 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि आती है।
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लेकिन 90% नहर जल केवल 8 जिलों को दिया जा रहा है।
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बाकी 14 जिलों की 65% भूमि को मात्र 10% जल मिल रहा है।
❗ राजनीतिक पक्षपात:
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पुराने ज़िलों जैसे हिसार, रोहतक, भिवानी को ऐतिहासिक रूप से अत्यधिक नहर जल मिला।
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परंतु इन क्षेत्रों की भूमि संरचना और जलग्रहण क्षमता को नजरअंदाज किया गया — जिससे वहां जलभराव और सेम की समस्या ने गंभीर रूप ले लिया।
🔬 समाधान क्या है?
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⚖ न्यायोचित नहर जल वितरण — जल की भौगोलिक आवश्यकता और भूमि संरचना के अनुसार।
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🛑 राजनीतिक हस्तक्षेप पर रोक — जल वितरण वैज्ञानिक तरीके से तय किया जाए।
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🧪 तकनीकी हस्तक्षेप —
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डॉ. सीएसएसआरआई जैसे संस्थानों की मदद से ड्रेनेज सिस्टम, लेवलिंग, और जिप्सम उपचार।
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खारे जल क्षेत्रों में सही फसल चक्र और वैकल्पिक खेती को बढ़ावा देना।
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🧭 लंबी अवधि की नीति — टिकाऊ कृषि और किसानों की आर्थिक सुरक्षा हेतु।
🌿 ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य:
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1960-70 के दशक में करनाल, अंबाला आदि सेम से ग्रस्त थे।
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1970 के बाद भूजल आधारित सिंचाई और हरित क्रांति ने इन्हें सेम मुक्त किया।
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वहीं दूसरी ओर, अंधाधुंध नहर जल वितरण ने अब पश्चिमी जिलों को सेम की चपेट में ला दिया।
सेमग्रस्त भूमि का स्थायी समाधान केवल “न्यायोचित नहरी जल वितरण” से ही संभव है।
इसके लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति, प्रशासनिक पारदर्शिता और वैज्ञानिक दृष्टिकोण अनिवार्य है।