
आचार्य लोकेश: “विश्व शांति के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण आवश्यक”
यूएई मंत्री: “अंतर-धार्मिक संवाद से बनेगा शांतिपूर्ण समाज”
📍 दुबई/नई दिल्ली, 15 अप्रैल 2025:
विश्व शांति और वैश्विक सद्भावना के प्रसार के लिए प्रतिबद्ध जैन आचार्य डॉ. लोकेश मुनि ने संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के सहिष्णुता और सह-अस्तित्व मंत्री शेख नाहयान बिन मुबारक अल नाहयान से दुबई में विशेष मुलाकात की। इस दौरान दोनों महानुभावों ने अंतर-धार्मिक संवाद, शांति शिक्षा और सामूहिक सहिष्णुता जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर गहन चर्चा की।
🕊️ विश्व शांति के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण ज़रूरी: आचार्य लोकेश
आचार्य लोकेश ने कहा कि वैश्विक स्तर पर शांति की स्थापना तभी संभव है जब हम विवाद, हिंसा और युद्ध के मूल कारणों को समझें और उन्हें समाधान की दिशा में सकारात्मक सोच और बहुआयामी दृष्टिकोण से हल करें।
उन्होंने बताया कि दिल्ली-एनसीआर में स्थापित अहिंसा विश्व भारती के “विश्व शांति केंद्र” द्वारा अंतर-धार्मिक सम्मेलनों, कार्यशालाओं और संवाद के माध्यम से समाज में शांति, सह-अस्तित्व और आपसी समझ को बढ़ावा दिया जा रहा है।
🌐 धर्म और आस्था निभा सकते हैं शांति में अहम भूमिका: सहिष्णुता मंत्री
यूएई के सहिष्णुता मंत्री शेख नाहयान बिन मुबारक अल नाहयान ने आचार्य लोकेश के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि,
“विश्व शांति केंद्र जैसे संगठनों की आज की दुनिया को सख्त ज़रूरत है। ये पहल समाज को जोड़ने, सहिष्णुता को बढ़ाने और वैश्विक सहयोग को प्रोत्साहित करने में कारगर साबित हो सकती हैं।”
उन्होंने आगे कहा कि अंतर-धार्मिक संवाद, साझा मूल्यों और नैतिक सिद्धांतों को बढ़ावा देकर ही हम ऐसा वातावरण बना सकते हैं जो शांति और न्याय के लिए अनुकूल हो।
🤝 सांस्कृतिक संवाद और शिक्षा के ज़रिए शांति की ओर कदम 
दोनों नेताओं ने इस बात पर भी बल दिया कि धर्म और आस्था यदि सकारात्मक दिशा में प्रयुक्त हों, तो वे समाज के विभिन्न वर्गों को जोड़ने में सेतु का कार्य कर सकते हैं। इसके साथ ही यह सहमति भी बनी कि शांति शिक्षा और युवाओं में वैश्विक नागरिकता की भावना को बढ़ाना अत्यंत आवश्यक है।
इस भेंट ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया कि विश्व शांति केवल सरकारों या संस्थाओं का कार्य नहीं, बल्कि सभी धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक घटकों की सम्मिलित जिम्मेदारी है।
आचार्य लोकेश और यूएई के सहिष्णुता मंत्री की यह बैठक अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शांति और सह-अस्तित्व की दिशा में एक प्रेरणादायी कदम के रूप में देखी जा रही है।