तो वह सब कुछ बिखेर देती है।
📍गुरुग्राम, 20 अप्रैल 2025
गुरुग्राम में आयोजित एक आध्यात्मिक सभा के दौरान एक संत के गहन विचार ने न केवल श्रोताओं के मन को छू लिया, बल्कि रिश्तों को लेकर एक गहरी सोच को जन्म दिया। उन्होंने कहा—
“मित्रता हो, परिवार हो या प्रेम – कोई भी रिश्ता क्यों न हो, यदि उसमें चालाकी प्रवेश कर जाए, तो वह सब कुछ बिखेर देती है।”
इस सरल लेकिन प्रभावशाली वाक्य ने सभा में उपस्थित सैकड़ों लोगों को आत्ममंथन के लिए प्रेरित किया।
🌿 संत का जीवनदर्शन
संत जी ने कहा कि आज के दौर में अधिकतर रिश्ते भरोसे और पारदर्शिता के बजाय स्वार्थ और चतुराई पर आधारित हो रहे हैं। चाहे वह दोस्ती हो, पति-पत्नी का संबंध हो या माता-पिता और संतान का रिश्ता— यदि किसी भी संबंध में चालाकी या छिपे हुए स्वार्थ आ जाएँ, तो वह रिश्ता टिकता नहीं।
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि जैसे कांच में एक बाल आ जाए तो पूरा शीशा कमजोर हो जाता है, ठीक वैसे ही रिश्तों में छल या चालाकी उन्हें धीरे-धीरे अंदर से तोड़ देती है।
🧘♂️ सभा में मौजूद लोगों की प्रतिक्रियाएँ
सभा में आए गुरुग्राम निवासी राकेश अग्रवाल ने कहा, “संत जी की बात ने दिल को छू लिया। आज हर कोई स्मार्ट बनना चाहता है, लेकिन वह भूल जाता है कि चालाकी और समझदारी में फर्क होता है।”
वहीं, एक युवती ने कहा कि “हमारे रिश्ते तभी टिकते हैं जब उनमें भरोसा, ईमानदारी और सच्चाई हो। चालाकी से हम कुछ समय के लिए जीत सकते हैं, लेकिन स्थायी सुख खो बैठते हैं।”
🕊️ संत का सन्देश: रिश्तों में सरलता ही शक्ति है
सभा के अंत में संत ने यह भी कहा कि “रिश्तों को निभाने के लिए बुद्धिमानी चाहिए, लेकिन वह बुद्धिमानी सच्चाई और करुणा से होनी चाहिए, न कि चालाकी से।”
उन्होंने कहा कि समाज तभी सुखी और मजबूत होगा जब हमारे निजी रिश्ते मजबूत होंगे। और यह मजबूती तभी आती है जब उनमें स्वार्थ नहीं, बल्कि सेवा, सच्चाई और समर्पण होता है।