
तब तक समाज में एकजुटता और भाईचारे की बात करना बेमानी है।
लखनऊ, उत्तर प्रदेश, 29 अप्रैल 2025 – यह सवाल आजकल समाज में एक गंभीर बहस का विषय बन गया है, खासकर उन घटनाओं के संदर्भ में जो लगातार हिंदू धर्म, संस्कृति और अस्मिता को चुनौती देती रहती हैं। यह सवाल तब और महत्वपूर्ण बन जाता है, जब हम देखते हैं कि हिंदू समाज के खिलाफ होने वाली कई घटनाओं पर न तो कोई आवाज उठाई जाती है और न ही समाज के विभिन्न हिस्सों से प्रतिक्रिया मिलती है। लेकिन जब कोई हिंदू अपनी धार्मिक आस्था या अस्तित्व की रक्षा के लिए खड़ा होता है, तो अचानक पूरा विश्व उसकी आलोचना करने में जुट जाता है।
इससे जुड़ा सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्यों कुछ धार्मिक या सांस्कृतिक मुद्दों पर प्रतिक्रियाएं इतनी तेज और तीव्र होती हैं, जबकि अन्य समय में ऐसी घटनाओं पर एक तरह की चुप्पी साधी जाती है।
हिंदू अस्मिता पर उठते सवाल:
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जब हिंदू समाज अपनी धार्मिक आस्थाओं को लेकर किसी मुद्दे पर खड़ा होता है, तो इसके पीछे उसका उद्देश्य न केवल धर्म की रक्षा करना होता है, बल्कि वह अपने सांस्कृतिक और सामाजिक अस्तित्व की रक्षा भी कर रहा होता है।
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गौ हत्या, धर्मांतरण, और हिंदू महिलाओं की अस्मिता जैसे मामलों में कई बार कोई ठोस आवाज़ नहीं उठती, जबकि यह मुद्दे हिंदू समाज की बुनियादी अस्मिता से जुड़े होते हैं।
आलोचना का दोगलापन:
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जब कुछ असामाजिक तत्व किसी विशेष समुदाय के धर्म का अपमान करते हैं, या जब हिंदू समाज किसी मुद्दे पर एकजुट होता है, तो यह सवाल उठता है कि क्यों कुछ समुदायों या घटनाओं पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय की चुप्पी होती है, लेकिन जब हिंदू समाज अपनी रक्षा करने की कोशिश करता है तो इसे “धार्मिक कट्टरता” का नाम दे दिया जाता है।
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धर्म, जाति, और पहचान के मुद्दों पर विशेष रूप से हिंदू धर्म के खिलाफ उठाए गए सवाल अक्सर सांस्कृतिक भिन्नताओं और राजनीतिक दबावों के कारण भड़काए जाते हैं।
भारत में सांस्कृतिक असहमति:
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भारत में सदियों से विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों का मेल-जोल रहा है, और यह सद्भावना और सहनशीलता का प्रतीक है। लेकिन यह भी सच है कि कभी-कभी कुछ ताकतें हिंदू धर्म और संस्कृति के खिलाफ विष फैलाती हैं, जिससे समाज में असहमति और विवाद उत्पन्न होते हैं।
हिंदू समाज का सशक्तिकरण:
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आजकल, हिंदू समाज अपनी संस्कृति, धर्म और अस्मिता को सशक्त बनाने की दिशा में कई कदम उठा रहा है। इसके तहत धार्मिक स्थलों की रक्षा, गौ माता की सुरक्षा, महिलाओं की सुरक्षा और धर्मांतरण के खिलाफ आंदोलन शामिल हैं।
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जब यह आंदोलन अधिक जागरूकता और ताकत से उठते हैं, तो उन्हें एक राजनीतिक एजेंडा के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश की जाती है, जबकि वास्तविकता यह है कि यह केवल अपनी संस्कृति और धर्म की रक्षा की लड़ाई होती है।
समाज के लिए एक महत्वपूर्ण सवाल:
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यह एक ऐसा सवाल है जिसे हमें सामूहिक रूप से सोचना चाहिए कि क्यों हिंदू समाज को अपनी अस्मिता की रक्षा करते हुए आलोचनाओं का सामना करना पड़ता है, जबकि अन्य धर्मों या समुदायों के खिलाफ होने वाली किसी भी घटना पर विश्वभर में एकजुटता दिखाई जाती है।
जब तक यह असमानता और सांस्कृतिक भेदभाव खत्म नहीं होते, तब तक समाज में एकजुटता और भाईचारे की बात करना बेमानी है। यह समय है कि हम सभी को मिलकर उन मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जो समाज की वास्तविक भलाई और समृद्धि से जुड़ी हैं, न कि केवल राजनीतिक लाभ के लिए बनाए गए भेदभावपूर्ण विचारों पर।