
जातिगत जनगणना 2025: आजादी के बाद पहली बार मिलेगी सभी जातियों की सटीक जानकारी
भारत में जातिगत जनगणना को लेकर लंबे समय से बहस चल रही थी, और अब केंद्र सरकार ने इस दिशा में बड़ा कदम उठाया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हाल ही में दिल्ली में हुई केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में आगामी जनगणना में जातिगत आंकड़े शामिल करने की मंजूरी दे दी गई है। इसकी जानकारी केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने मीडिया को दी।
क्या है जातिगत जनगणना?
जातिगत जनगणना का तात्पर्य है – देश में विभिन्न जातियों की संख्या और उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति से संबंधित स्पष्ट और विस्तृत आंकड़ों को एकत्र करना। इस जनगणना के जरिए यह पता लगाया जाएगा कि किस जाति की आबादी कितनी है और उनकी स्थिति क्या है।
इतिहास: कब हुई थी आखिरी जातिगत जनगणना?
भारत में पहली बार जातिगत जनगणना 1881 में हुई थी और आखिरी बार 1931 में ब्रिटिश शासन के दौरान सभी जातियों की गणना की गई थी। स्वतंत्र भारत में 1951 से जनगणना की परंपरा तो जारी रही, लेकिन उसमें केवल अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) के आंकड़े ही लिए जाते थे। अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) और सामान्य वर्ग की जातियों की गणना को छोड़ दिया गया।
विपक्ष और जनभावना का असर
पिछले कुछ वर्षों में जातिगत जनगणना की मांग ने जोर पकड़ा। विपक्षी दलों ने इसे सामाजिक न्याय और संसाधनों के उचित बंटवारे से जोड़ा। विशेषज्ञों का मानना है कि यह मुद्दा अब आम जनता के बीच भी व्यापक चर्चा का विषय बन चुका है, जिससे सरकार पर दबाव बढ़ गया था कि वह जल्द फैसला ले।
कांग्रेस पर आरोप
अश्विनी वैष्णव ने कहा कि कांग्रेस सरकारों ने हमेशा जातिगत जनगणना का विरोध किया। 1947 के बाद से कभी भी पूरी जाति आधारित गणना नहीं करवाई गई। यूपीए सरकार के समय कुछ राज्यों में राजनीतिक उद्देश्य से केवल जाति सर्वे करवाया गया, परंतु उसे अधिकारिक मान्यता नहीं दी गई।
निष्कर्ष:
जातिगत जनगणना का यह निर्णय न सिर्फ सामाजिक न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है, बल्कि इससे भविष्य की नीतियों और आरक्षण व्यवस्था को लेकर भी सटीक निर्णय लिए जा सकेंगे। 2025 में होने वाली जनगणना, आजादी के बाद पहली बार सभी जातियों के वास्तविक आंकड़े सामने लाएगी।