
नीतीश की पहल को मिला केंद्र का साथ, अब पूरे देश में होगी जातीय जनगणना
बिहार की कई योजनाएं न केवल राज्य की राजनीति में चर्चा का विषय बनीं, बल्कि अब राष्ट्रीय स्तर पर भी उन्हें अपनाया जा रहा है। खासकर जातीय जनगणना (Caste Census), जिसे लेकर कभी केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में विरोध दर्ज करवा चुकी थी, अब उसी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने मंजूरी दे दी है। यह वही मांग है, जिसे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार वर्षों से उठा रहे थे।
प्रधानमंत्री मोदी, जिन्होंने कुछ वर्ष पहले ‘एक हैं तो सेफ हैं’ जैसा एकता पर आधारित नारा दिया था, अब देश में जाति की गिनती कराने के लिए तैयार हो गए हैं। यह बदलाव कई सवालों को जन्म देता है, खासकर तब जब नीतीश कुमार खुद अब एनडीए में शामिल हो चुके हैं।
नीतीश कुमार की रणनीति रंग लाई
बिहार में नीतीश कुमार ने जातीय सर्वे को मिशन के रूप में आगे बढ़ाया। महागठबंधन सरकार का नेतृत्व करते हुए उन्होंने सर्वदलीय बैठक की, सभी दलों की सहमति ली और फिर नेताओं को लेकर दिल्ली पहुंचे। वहां प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात हुई और बिहार में जातीय सर्वे की राह साफ हुई। इसके बाद सर्वे हुआ और उसके आंकड़े सार्वजनिक किए गए।
नीतीश सरकार ने इस डेटा के आधार पर 65% तक आरक्षण लागू किया, जिसे बाद में सुप्रीम कोर्ट ने स्थगित कर दिया। लेकिन इससे पहले एक महत्वपूर्ण आंकड़ा सामने आया—बिहार में 94 लाख परिवार बेहद गरीब हैं। नीतीश सरकार ने इन परिवारों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए दो-दो लाख रुपए देने की योजना शुरू की, जो फेजवाइज लागू हो रही है।
विपक्ष से छीना अहम मुद्दा
दिलचस्प बात यह है कि INDIA गठबंधन ने 2024 चुनाव के लिए जातीय जनगणना को प्रमुख एजेंडा बनाया था। राहुल गांधी ने इसे एक ‘मिशन’ बताया था। लेकिन अब जब केंद्र की मोदी सरकार खुद जातीय जनगणना के लिए तैयार हो गई है, तो विपक्ष का एक बड़ा मुद्दा खुद-ब-खुद कमजोर पड़ गया।
लालू यादव का दावा और हकीकत
इस पूरे घटनाक्रम के बीच आरजेडी प्रमुख लालू यादव का यह दावा भी चर्चा में है कि 1996-97 में उनके कहने पर संयुक्त मोर्चा की सरकार ने जातीय जनगणना कराने का निर्णय लिया था, लेकिन एनडीए ने इसे लागू नहीं किया। वहीं, यूपीए सरकार के दौरान जब आरजेडी सत्ता में भागीदार रही, तब भी कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
निष्कर्ष
बिहार में शुरू हुई एक सामाजिक पहल अब राष्ट्रीय राजनीति की धुरी बन चुकी है। नीतीश कुमार, जिन्होंने महागठबंधन के समय यह अभियान शुरू किया था, आज एनडीए का हिस्सा बनकर उसी एजेंडा को केंद्र सरकार से लागू करवा रहे हैं। इससे यह साफ है कि बिहार की राजनीतिक प्रयोगशाला में जन्मे विचार अब पूरे देश की दिशा तय कर सकते हैं।