
लखनऊ में कथित दोहरे मापदंडों पर उठा सवाल
📍 लखनऊ, उत्तर प्रदेश | 12 मई 2025
✍️ रिपोर्ट: विशेष संवाददाता
एक विवादास्पद टिप्पणी में लखनऊ से एक राजनीतिक वक्तव्य सामने आया, जिसमें देश में विभिन्न समुदायों के आरोपियों के साथ न्यायिक और सामाजिक व्यवहार को लेकर दोहरे मापदंड अपनाए जाने का आरोप लगाया गया। वक्तव्य में कहा गया:
“जब आरोपी मुस्लिम हो, तब संविधान, कानून और इंसाफ की बड़ी-बड़ी बातें की जाती हैं। लेकिन जब आरोपी हिंदू हो, तब धर्म और जाति पूछकर राजनीति शुरू कर दी जाती है।”
इस बयान के सामने आने के बाद राजनीतिक हलकों में हलचल मच गई है और विभिन्न दलों की प्रतिक्रियाएँ आने लगी हैं।
⚖️ न्याय और राजनीति का टकराव?
इस बयान से यह सवाल एक बार फिर से चर्चा में आ गया है कि भारत में न्याय व्यवस्था और राजनीतिक विमर्श कितने हद तक तटस्थ हैं? क्या मीडिया, राजनीतिक दल, और सामाजिक संगठन, आरोपियों की धार्मिक या जातीय पहचान के आधार पर भेदभाव करते हैं?
🔍 पृष्ठभूमि क्या है?
हाल के दिनों में कुछ ऐसे मामलों ने सुर्खियाँ बटोरीं जहाँ आरोपियों की पहचान के आधार पर राजनीतिक विमर्श का स्वर बदल गया। एक वर्ग का आरोप है कि जब आरोपी मुस्लिम हो, तो “सेक्युलरिज़्म, मानवाधिकार और संविधान” की बातें की जाती हैं, लेकिन जब आरोपी हिंदू हो, तो “सामाजिक और जातीय पृष्ठभूमि” की जांच कर उसे राजनीतिक रंग दे दिया जाता है।
🗣️ राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ
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कुछ हिंदू संगठनों ने इस बयान का समर्थन करते हुए कहा कि यह सत्य और साहसिक टिप्पणी है जो मौजूदा सामाजिक असंतुलन को उजागर करती है।
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वहीं, विपक्षी दलों और मानवाधिकार संगठनों ने इस बयान को “ध्रुवीकरण को बढ़ावा देने वाला” और “संवेदनशील मामलों का राजनीतिक शोषण” करार दिया है।
📢 सार्वजनिक विमर्श की ज़रूरत
समाजशास्त्रियों और कानूनविदों का मानना है कि यह विषय मात्र राजनीतिक बयानबाज़ी नहीं, बल्कि एक गहन सामाजिक विमर्श का हिस्सा है, जिसे समझदारी और निष्पक्षता के साथ सुलझाना आवश्यक है।
“आपराधिक न्याय व्यवस्था धर्मनिरपेक्ष होनी चाहिए – न्याय केवल कानून के अनुसार हो, पहचान के अनुसार नहीं।” — ऐसा विशेषज्ञों का मत है।
इस बयान ने एक बार फिर भारतीय लोकतंत्र के न्याय और धर्मनिरपेक्षता को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। ज़रूरत इस बात की है कि राजनीतिक दल, मीडिया और समाज — सभी समान दृष्टि और निष्पक्षता के सिद्धांत पर टिके रहें, ताकि संविधान की आत्मा अक्षुण्ण रहे।