

माँ का बलिदान और प्रेम – एक माँ अपनी पूरी ज़िंदगी बच्चों के लिए समर्पित कर देती है। वह हर दर्द सहती है, लेकिन अपने बच्चों को कभी दुख में नहीं देखना चाहती। ऐसी माँ के लिए उसकी अंतिम विदाई सम्मान से होनी चाहिए, न कि संपत्ति और गहनों को लेकर झगड़े में बदल जाए।
बेटों का व्यवहार – जयपुर की यह घटना दर्शाती है कि किस तरह ममता और इंसानियत को लालच के आगे गिरवी रख दिया गया है। माँ की चिता पर लेटना इसलिए नहीं कि वह टूट चुका है, बल्कि इसलिए कि उसे गहने चाहिए – यह दृश्य केवल निंदनीय नहीं, बल्कि आत्मा को झकझोर देने वाला है।
समाज के लिए संदेश – यह घटना हर उस व्यक्ति को आइना दिखाती है जो अपने माता-पिता की सेवा करने के बजाय उन्हें बोझ समझता है। यह याद रखना जरूरी है कि माता-पिता ने हमें उस समय संभाला जब हम अपने पैरों पर खड़े भी नहीं हो सकते थे।
“माँ की चिता पर गहनों की लालसा में लेटना, इंसान की आत्मा के मर जाने का संकेत है।”
ऐसी घटनाएं सिर्फ खबर नहीं होतीं, यह चेतावनी होती हैं – समाज के उस पतन की, जहां रिश्ते अब ‘सौदे’ बनते जा रहे हैं। हमें यह सोचने की ज़रूरत है कि हम किस दिशा में जा रहे हैं? क्या हम आने वाली पीढ़ी को यही मूल्य सिखाना चाहते हैं?
“पूत कुपूत हो सकता है, पर माता कुमाता नहीं होती।”
लेकिन जब पूत अपनी माँ के अंतिम क्षणों तक उसे अपमान दे, तो यह समाज के लिए आत्ममंथन का विषय बन जाता है।
अगर आप चाहें, तो मैं इस विषय पर एक भावनात्मक निबंध या कविता भी लिख सकता हूँ।
आपकी साझा की गई जानकारी के आधार पर, राजस्थान के जयपुर जिले के विराटनगर क्षेत्र में एक 80 वर्षीय महिला, छीतर रेगर, का निधन 3 मई को हुआ। उनके निधन के बाद, अंतिम संस्कार के दौरान एक विवाद उत्पन्न हुआ। महिला के बड़े बेटे, गिरधारी लाल, ने उनकी चांदी की कड़ियां प्राप्त कीं, जिससे छोटे बेटे, ओमप्रकाश, ने आपत्ति जताई। ओमप्रकाश ने चिता पर लेटकर कहा कि यदि उसे चांदी की कड़ियां नहीं दी गईं, तो वह चिता में कूद जाएगा। इस विवाद के कारण अंतिम संस्कार में देरी हुई और स्थानीय पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा।
यह घटना पारिवारिक रिश्तों और संपत्ति के लिए संघर्ष की एक दुखद मिसाल प्रस्तुत करती है। माँ के प्रति सम्मान और स्नेह की भावना को नज़रअंदाज़ करते हुए, संपत्ति के लिए विवाद ने इस अंतिम संस्कार को एक संघर्ष में बदल दिया।
इस प्रकार की घटनाएं समाज में रिश्तों की मर्यादा और पारिवारिक मूल्यों के क्षरण की ओर इशारा करती हैं। समाज में इस प्रकार के मुद्दों पर विचार और जागरूकता आवश्यक है ताकि भविष्य में ऐसे विवादों से बचा जा सके।
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