
यह पहल राज्य की ‘एक जिला, एक उत्पाद’ (ODOP) नीति के तहत स्थानीय उत्पादों को वैश्विक पहचान दिलाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।
लखनऊ उत्तर 19 मई। उत्तर प्रदेश ने भौगोलिक संकेतक (GI) टैग वाले उत्पादों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि की है, जिससे राज्य ने भारत में अग्रणी स्थान प्राप्त किया है। वर्तमान में उत्तर प्रदेश के पास 77 GI टैग वाले उत्पाद हैं, और राज्य सरकार का लक्ष्य मार्च 2026 तक इनकी संख्या बढ़ाकर 152 करना है। इसके लिए 25 नए उत्पादों के लिए आवेदन प्रक्रिया में हैं। यह पहल राज्य की ‘एक जिला, एक उत्पाद’ (ODOP) नीति के तहत स्थानीय उत्पादों को वैश्विक पहचान दिलाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।
🏆 प्रमुख GI टैग प्राप्त उत्पाद
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी दौरे के दौरान 21 पारंपरिक उत्पादों को GI टैग के प्रमाण पत्र वितरित किए। इनमें शामिल हैं:
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वाराणसी: बनारसी तबला, भरवा मिर्च, शहनाई, मेटल कास्टिंग क्राफ्ट, म्यूरल पेंटिंग, लाल पेड़ा, ठंडाई, तिरंगी बर्फी, चिरईगांव का करौंदा।
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बरेली: बरेली फर्नीचर, जरी-जरदोजी, टेराकोटा।
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मथुरा: सांझी क्राफ्ट।
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बुंदेलखंड: काठिया गेहूं।
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पीलीभीत: बांसुरी।
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चित्रकूट: वुड क्राफ्ट।
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आगरा: स्टोन इनले वर्क।
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जौनपुर: इमरती।
काशी क्षेत्र में 32 GI टैग वाले उत्पाद हैं, जिससे यह क्षेत्र वैश्विक GI हब के रूप में उभरा है। यहां लगभग 20 लाख लोग जुड़े हुए हैं और वार्षिक कारोबार ₹25,500 करोड़ से अधिक है।
📈 GI टैग की महत्वता और सरकारी पहल
GI टैग उत्पादों को कानूनी संरक्षण मिलता है, जिससे उनकी मौलिकता और गुणवत्ता सुनिश्चित होती है। उत्तर प्रदेश सरकार ने GI उत्पादों के प्रचार-प्रसार, अधिकृत उपयोगकर्ताओं की संख्या बढ़ाने और उद्यमिता को प्रोत्साहित करने के लिए व्यापक योजना बनाई है। इसके तहत MSME विभाग ने मानव कल्याण संगठन के साथ साझेदारी की है, जो पारंपरिक और स्वदेशी उत्पादों की रक्षा और संवर्धन में विशेषज्ञता रखता है। यह पहल ग्रामीण विकास, पारंपरिक ज्ञान की सुरक्षा और निर्यात अवसरों को बढ़ावा देने में सहायक होगी।
🌍 वैश्विक बाजार में GI उत्पादों की पहचान
उत्तर प्रदेश के GI टैग वाले उत्पादों की वैश्विक पहचान बढ़ाने के लिए निर्यात की दिशा में भी कदम उठाए गए हैं। मुजफ्फरनगर से GI टैग वाले गुड़ का 30 मीट्रिक टन का पहला निर्यात बांग्लादेश के लिए किया गया है। यह पहल किसान उत्पादक संगठनों (FPOs) और किसान उत्पादक कंपनियों (FPCs) के माध्यम से की गई है, जिससे स्थानीय उत्पादकों को वैश्विक बाजार में प्रवेश मिल रहा है।