
दिल्ली की धड़कन कही जाने वाली यमुना नदी न सिर्फ राजधानी की प्यास बुझाती है, बल्कि हजारों लोगों की आजीविका, संस्कृति और आस्था से भी जुड़ी रही है। कभी इस नदी के किनारे मछली पालन, खेती और धार्मिक आयोजन हुआ करते थे, लेकिन अब हालात बिल्कुल बदल चुके हैं। अतिक्रमण, अनियोजित विकास और सरकारी लापरवाही ने मिलकर यमुना को ‘मृत नदी’ बना दिया है।
दिल्ली को प्यासा बना रही यमुना की हालत
आज यमुना इतनी प्रदूषित हो चुकी है कि राजधानी में पेयजल संकट खड़ा हो गया है। भूजल भी दूषित हो रहा है, जिससे न केवल पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंच रहा है, बल्कि दिल्लीवासियों के स्वास्थ्य पर भी गंभीर असर पड़ा है। नदी में अमोनिया की बढ़ी मात्रा के चलते जल आपूर्ति बार-बार बाधित होती है।
यमुना की सफाई: राजनीति ज्यादा, नतीजे कम
हर चुनाव में यमुना का मुद्दा जोर-शोर से उठाया जाता है। वादे होते हैं, घोषणाएं होती हैं, लेकिन हकीकत वही रहती है। 1993 में शुरू हुए यमुना एक्शन प्लान से लेकर अब तक 8372 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं। बावजूद इसके, यमुना आज भी देश की सबसे प्रदूषित नदियों में गिनी जाती है।
दिल्ली में सिर्फ 2% यमुना, लेकिन 80% प्रदूषण यहीं से
दिल्ली में यमुना सिर्फ 2% हिस्से में बहती है, लेकिन पूरे प्रदूषण का 80% हिस्सा यहीं से मिलता है। वजीराबाद से असगरपुर गांव तक 26 किलोमीटर की दूरी इस प्रदूषण की मुख्य वजह है। दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (DPCC) की रिपोर्ट बताती है कि नवंबर में यमुना की हालत और भी बदतर हो गई है। फेकल कोलीफार्म का स्तर पिछले चार वर्षों में सबसे ज्यादा पाया गया — यह सीधा संकेत है कि नदी में बिना ट्रीट किए सीवेज को छोड़ा जा रहा है।
सफाई के दावे बनाम जमीनी हकीकत
दिल्ली सरकार का दावा है कि उसके पास इतना बड़ा इंफ्रास्ट्रक्चर है कि वह 80% गंदे पानी को ट्रीट कर सकती है, और अगले कुछ महीनों में यह आंकड़ा 100% तक पहुंचेगा। लेकिन सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट (CSE) की रिपोर्ट कहती है कि 37 में से 33 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (STP) यमुना से दूर बने हैं, और उनका ट्रीट किया गया पानी जब 22 गंदे नालों से होकर नदी तक पहुंचता है, तो फिर वह पहले से ही दूषित हो चुका होता है।
अब तक कितना खर्च और क्या मिला?
यमुना एक्शन प्लान-1 और 2: ₹1514.70 करोड़ खर्च
दिल्ली सरकार (2017-2022): ₹6856.91 करोड़ खर्च
यमुना एक्शन प्लान-3: ₹2009.12 करोड़ से 11 प्रोजेक्ट पर कार्य जारी
कुल मिलाकर हजारों करोड़ रुपये खर्च होने के बावजूद यमुना की स्थिति जस की तस बनी हुई है।
2025 तक डुबकी लगाने लायक यमुना?
दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 2021 में वादा किया था कि 2025 तक यमुना इतनी साफ हो जाएगी कि लोग उसमें डुबकी लगा सकें। लेकिन अब खुद मान चुके हैं कि यह वादा पूरा नहीं हो सका। सवाल यह है कि क्या अब दिल्ली में सत्तारूढ़ बीजेपी सरकार इस अधूरे वादे को पूरा कर पाएगी, या फिर यह मुद्दा भी सिर्फ चुनावी जुमला बनकर रह जाएगा?
निष्कर्ष:
यमुना की सफाई अब सिर्फ सरकारों की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि दिल्लीवासियों की भी प्राथमिकता होनी चाहिए। हर नागरिक को यह समझना होगा कि जब तक हम खुद नदी को गंदा करना नहीं छोड़ेंगे, तब तक कोई सरकार इसे साफ नहीं कर सकती। आने वाले चुनावों में यमुना पर वोट मांगने वाले नेताओं से सिर्फ वादे नहीं, ठोस रोडमैप और समयसीमा भी मांगनी होगी।