
पुंछ की पुकार: टूटे घर, नम आंखें और एक उम्मीद का नाम – राहुल गांधी”
खंडहर बना वो घर, कभी जहां किलकारियां गूंजती थीं। 12 साल की जोया और 10 साल का जैन — जुड़वां भाई-बहन, जो मोहल्ले की मुस्कान थे — अब सिर्फ यादों में रह गए हैं। पाकिस्तान की गोलाबारी ने उनका आशियाना नहीं, पूरी जिंदगी छीन ली।
टेढ़े-मेढ़े रास्तों और सकरी सीढ़ियों से होकर राहुल गांधी उस कमरे तक पहुंचे, जहां कभी हँसी की आवाजें गूंजती थीं। अब वहां सन्नाटा था… और दीवारों पर दर्द की चीखें दर्ज थीं। राहुल ने परिजनों का हाथ थामा, उनकी आंखों में देखा, और चुपचाप उनका दर्द बांट लिया।
पुंछ में पाकिस्तान की बर्बर गोलाबारी ने हर घर को घायल किया है। कोई कोना ऐसा नहीं, जो बचा हो। हर चेहरा उदास, हर दिल बोझिल। और फिर उन दुखों के बीच एक चेहरा – राहुल गांधी – जो वहां सिर्फ नेता नहीं, एक संवेदनशील इंसान बनकर पहुंचा।
राहुल गांधी ने जामिया जिया-उल-उलूम का दौरा किया, जहां पाकिस्तान की गोलियों ने तालीम पर ताला जड़ दिया। वे मौलाना कारी मोहम्मद इकबाल के घर भी गए — जिनकी हत्या के बाद उन्हें गलत तरीके से आतंकवादी बताया गया। राहुल ने उनके परिवार को न्याय और समर्थन का भरोसा दिया।
13 साल के विहान भार्गव की कहानी भी उतनी ही दिल दहला देने वाली है — गोलाबारी से भागते वक्त उनकी कार पर हमला हुआ और विहान इस दुनिया को छोड़ गया। राहुल उनके परिजनों से मिले, उनकी पीड़ा सुनी, और उन्हें हिम्मत दी।
राहुल गांधी का यह दौरा राजनीतिक नहीं, पूरी तरह मानवीय था। सत्ता में न होते हुए भी उन्होंने जो दिया, वह शायद सत्ता में रहकर भी कोई न दे सके – सहारा, हमदर्दी और उम्मीद।
उन्होंने टूटे घरों के बीच खड़े रहकर लोगों को बताया कि अंधेरे चाहे जितने भी गहरे हों, एक चिराग काफी होता है… और वही चिराग, इस बार पुंछ में राहुल गांधी बनकर पहुंचा।