
भारत विविधता में एकता का देश है, जहां हर त्यौहार, हर परंपरा में कोई न कोई गहरा सांस्कृतिक और आध्यात्मिक संदेश छिपा होता है। इन्हीं में से एक अत्यंत महत्वपूर्ण व्रत है — वट सावित्री व्रत, जो 26 मई, ज्येष्ठ अमावस्या के दिन रखा जाता है।
सुहागन स्त्रियों का यह व्रत क्यों है खास?
भारतीय संस्कृति में सतीत्व और पत्नीत्व को विशेष मान्यता दी गई है। वट सावित्री व्रत एक ऐसी पौराणिक कथा पर आधारित है, जिसमें सावित्री ने अपने मृत पति सत्यवान के प्राणों को यमराज से भी लड़कर वापस ले लिया था। यह व्रत उसी अद्वितीय प्रेम, निष्ठा और शक्ति का प्रतीक है।
इस वर्ष का विशेष संयोग
-
तिथि: 26 मई (ज्येष्ठ अमावस्या)
-
योग: भरणी नक्षत्र, शोभन योग, अतिगंड योग
-
अभिजीत मुहूर्त: सुबह 11:54 से दोपहर 12:42 तक
-
सोमवार का दिन: यह दिन सोमवती अमावस्या भी है, जो अत्यंत पुण्यदायी और दुर्लभ माना जाता है।
-
चंद्रमा की स्थिति: वृषभ राशि में — शुभ फलदायक।
पूजा विधि संक्षेप में:
-
वट वृक्ष के नीचे सावित्री, सत्यवान और यमराज की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
-
वट वृक्ष की पूजा करें — जल, फूल, धूप, मिठाई चढ़ाएं।
-
कच्चा सूत लेकर पेड़ की सात बार परिक्रमा करें, सूत तने में लपेटते जाएं।
-
हाथ में भीगा चना लेकर व्रत कथा सुनें।
-
फिर वह चना, थोड़ा धन और वस्त्र सास को भेंट करें और उनका आशीर्वाद लें।
-
अंत में वट वृक्ष की कोंपल खाकर उपवास समाप्त करें।
व्रत का महत्व:
जैसे करवा चौथ में चंद्रमा की पूजा कर पति की लंबी उम्र की कामना की जाती है, वैसे ही वट सावित्री व्रत में वट वृक्ष की पूजा कर पति की दीर्घायु और सुखी वैवाहिक जीवन की प्रार्थना की जाती है।