
भारत में न्यायिक प्रणाली में अत्यधिक लंबित मामले एक गंभीर समस्या बन चुकी है।
लखनऊ उत्तर प्रदेश 1 जून। आपका कथन “शासन की पहली शर्त है रूल ऑफ लॉ। यह समयबद्ध, सहज और सरल हो। समय पर सुनवाई और मेरिट के आधार पर मामलों का निस्तारण हो, यह आवश्यक है।” न्यायपालिका की प्राथमिक जिम्मेदारी को रेखांकित करता है: नागरिकों को त्वरित और निष्पक्ष न्याय प्रदान करना।
न्याय में देरी का प्रभाव
भारत में न्यायिक प्रणाली में अत्यधिक लंबित मामले एक गंभीर समस्या बन चुकी है। हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, देश की जेलों में चार में से तीन कैदी विचाराधीन हैं, यानी उन्होंने कोई सजा नहीं पाई है लेकिन फिर भी वे जेल में बंद हैं। इसका मुख्य कारण न्यायिक प्रणाली में अत्यधिक लंबित मामले हैं। सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट और विशेष रूप से निचली अदालतों में केसों की भरमार न्याय प्रक्रिया को धीमा कर रही है। इस देरी का प्रभाव केवल न्याय तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इससे सामाजिक और आर्थिक रूप से भी व्यक्ति व उनके परिवार प्रभावित होते हैं। न्याय में देरी का मतलब है कि निर्दोष लोगों को लंबे समय तक स्वतंत्रता से वंचित रहना पड़ता है। कारगर समाधान के लिए न्याय प्रणाली में सुधार, जजों की संख्या में वृद्धि, तकनीकी साधनों का अधिक उपयोग और तेज प्रक्रिया की आवश्यकता है। हालांकि चुनौतियाँ गंभीर हैं, लेकिन सुधार की कोशिशें और नई व्यवस्थाएं स्थिति में सुधार के संकेत भी दे रही हैं।
न्यायपालिका की भूमिका
भारत के प्रधान न्यायाधीश (CJI) एन. वी. रमण ने न्याय में देरी को लोकतंत्र के लिए खतरे के रूप में देखा है। उन्होंने कहा कि “न्याय से इनकार अंततः अराजकता की ओर ले जाएगा” और यह भी कि “न्यायपालिका की अस्थिरता तब होगी जब लोग अतिरिक्त न्यायिक तंत्र की तलाश करेंगे”। उन्होंने न्यायपालिका से आग्रह किया कि वे वादियों के लिए अनुकूल माहौल बनाएं, जो अक्सर ‘बहुत अधिक मनोवैज्ञानिक दबाव में’ होते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि भारत में न्याय प्रदान करने का तंत्र बहुत ‘जटिल और महंगा’ है और देश अदालतों को समावेशी और सुलभ बनाने में बहुत पीछे है।
सुधार की दिशा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने न्यायिक प्रणाली में सुधार की दिशा में कदम उठाए हैं। उन्होंने नई न्याय संहिता लागू की है, जिसमें आरोप पत्र दाखिल करने और किसी भी मामले में प्रत्येक चरण को पूरा करने के लिए समय-सीमा निर्धारित की गई है। इससे त्वरित न्याय की दिशा में एक ऊंची छलांग लगी है। उदाहरण के लिए, चंडीगढ़ में वाहन चोरी के मामले में महज 2 महीने 11 दिन में सजा सुनाई गई। दिल्ली और बिहार में भी त्वरित न्याय के उदाहरण सामने आए हैं, जिससे भारतीय न्याय संहिता की प्रभावशीलता स्पष्ट होती है।
न्याय में देरी न केवल व्यक्तियों के अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि यह लोकतंत्र और कानून के शासन के लिए भी खतरे की घंटी है। समय पर और निष्पक्ष न्याय प्रदान करना न्यायपालिका की प्राथमिक जिम्मेदारी है, और इसके लिए आवश्यक सुधारों को लागू करना अत्यंत आवश्यक है।