
स्वामी शंकराचार्य ने बकरीद के संदर्भ में यह दावा किया है कि ऐसे कुछ मुस्लिम धर्म के लोग हैं जो हिंदुओं को चिढ़ाने के लिए
शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद हमेशा अपने विवादित बयानों को लेकर सुर्खियों में बने रहते हैं कभी भी कुछ भी बोलना स्वामी जी का स्वभाव है लेकिन इस बार अलग मुद्दा गर्मी हुआ है दरअसल बकरीद आने वाली है और उससे पहले शंकराचार्य ने जो बयान दिया है वह चर्चा का विषय बना हुआ है आपको बता दे चले कि स्वामी शंकराचार्य ने बकरीद के संदर्भ में यह दावा किया है कि ऐसे कुछ मुस्लिम धर्म के लोग हैं जो हिंदुओं को चिढ़ाने के लिए हिंदुओं से दुश्मनी करने के लिए और समाज में हिंसा फैलाने के लिए हमारी गाय माता की बलि देते हैं उन्होंने कहा कि इस परंपरा का परिणाम बेहद गंभीर होने वाला है इस दौरान शंकराचार्य ने कहा हिंदुओं को चिढ़ाने के लिए कुछ मुसलमान द्वारा गौ माता की बलि दी जाती है इस दौरान उन्होंने यह भी कहा कि देखिए अपने मजहब की परंपरा को निभाने के लिए गौ माता की बलि देना ठीक नहीं है यह न सिर्फ हिंदुओं के लिए बल्कि मुस्लिम धर्म के लिए भी ठीक बात नहीं है शंकराचार्य ने पुलिस प्रशासन से इस बारे में अपील भी की है कि किसी भी जगह पर गौ माता की बाली नहीं दी जानी चाहिए जिस तरह हम अपने मां का दूध पी के बड़े होते हैं वैसे ही हम बचपन से ही जब थोड़े बड़े होते हैं तो गाय माता का दूध भी पीते हैं और कभी भी मन का दूध धर्म और मजहब नहीं होता है इस दौरान स्वामी जी ने कहा कि सार्वजनिक तौर पर अगर कुर्बानी दी जाती है तो भाईचारे को ठेस पहुंचेगी जो कहीं से भी ठीक नहीं है और समाज में दो तरफ व्यवहार बढ़ेगा इस दौरान वाराणसी में भी पातालपुरी मठ पर दर्जनों की संख्या में कई धर्माचार्य और प्रबुद्ध जनों की एक बैठक आयोजित की गई जिसमें सबसे पहले संकट मोचन श्री हनुमान चालीसा का पाठ किया गया उसके बाद जगतगुरु बालक देवाचार्य ने पत्रकारों से बातचीत की इस दौरान उन्होंने काशी के महिमा का मंडन किया उन्होंने कहा कि काशी बहुत पुरानी और पवित्र नगरी है यहां से अनेक नदियों का प्रवाह होता है लेकिन अगर यहां त्यौहार के नाम पर पशुओं की कुर्बानी दी जाएगी और उनका रक्त नदियों में बहेगी तो यह सीधे-सीधे धार्मिक आस्था व पर्यावरण को चोट पहुंचाने वाली बात होगी इसलिए विशेष तौर पर किसी भी त्यौहार के दौरान सार्वजनिक रूप से पशुओं की बाली नहीं होनी चाहिए हम इसका पूर्णतया विरोध करेंगे