
भारतीय संत महा परिषद’ के गठन का मुख्य उद्देश्य भारतीय संस्कृति और सनातन परंपराओं के संरक्षण
भारतीय संत महा परिषद का भव्य लोकार्पण, शीर्ष धर्माचार्यों ने धर्म-संस्कृति के संरक्षण का किया आह्वान
बैंगलुरु , 17 जून:
विश्व शांति, भारतीय संस्कृति और सनातन परंपरा के संरक्षण में उल्लेखनीय योगदान देने के लिए आचार्यश्री लोकेश जी को “श्री परिपूर्णा सनातन शांति पुरस्कार” से सम्मानित किया गया। यह सम्मान उन्हें बैंगलुरु में आयोजित एक विशेष समारोह में प्रदान किया गया, जहाँ देश-विदेश से पधारे अनेक शीर्ष धर्माचार्यों ने भाग लिया।
इस ऐतिहासिक अवसर पर ‘भारतीय संत महा परिषद’ का विधिवत लोकार्पण भी किया गया, जिसका उद्देश्य भारतीय संस्कृति, सनातन धर्म और नैतिक मूल्यों का संवर्धन एवं प्रसार करना है।
इस समारोह में काशी के शंकराचार्य विजेंद्र सरस्वती स्वामी जी, जगतगुरु रामभद्राचार्य जी, जगतगुरु स्वामी निर्मलानंद नाथ जी, और अन्य अनेक संत-महापुरुषों ने भाग लिया।

“धर्माचार्यों की भूमिका विश्व शांति में महत्वपूर्ण” – आचार्य लोकेशजी
सम्मान प्राप्त करने के उपरांत संबोधित करते हुए जैन आचार्य लोकेश जी ने कहा कि, “धर्माचार्यों, संतों और ऋषियों ने सदियों से न केवल आध्यात्मिक मार्गदर्शन दिया है, बल्कि सामाजिक सुधार और जनजागरण में भी महती भूमिका निभाई है। आज आवश्यकता है कि यह परंपरा और सशक्त हो।”
उन्होंने कहा कि भारतीय संत महा परिषद एक ऐसा मंच बनेगा जो विश्व शांति, सहिष्णुता और धर्मों के बीच संवाद को मजबूती प्रदान करेगा।
“भारतीय ज्ञान को वैश्विक मंच तक पहुंचाना होगा” – शंकराचार्य विजेंद्र सरस्वती
काशी के शंकराचार्य विजेंद्र सरस्वती स्वामी जी ने भारतीय संत परंपरा की गरिमा को रेखांकित करते हुए कहा, “भारत की भूमि को तप, त्याग और ज्ञान ने गौरवशाली बनाया है। अब समय आ गया है कि हम इस भारतीय ज्ञान-विज्ञान को युवा पीढ़ी और वैश्विक मंचों तक पहुँचाएं।”
“सनातन धर्म को बढ़ावा देना मुख्य उद्देश्य” – जगतगुरु रामभद्राचार्य
जगतगुरु रामभद्राचार्य जी ने कहा कि, “भारतीय संत महा परिषद का मुख्य उद्देश्य धार्मिक और सामाजिक समरसता को बढ़ावा देना, नैतिक मूल्यों की स्थापना करना और संत समाज को एकजुट करना है। यह परिषद धार्मिक एकता और राष्ट्र निर्माण में एक महत्वपूर्ण कड़ी बनेगी।”
“धर्म और अध्यात्म से समाज को दिशा मिलती है” – स्वामी निर्मलानंद नाथ जी
जगतगुरु स्वामी निर्मलानंद नाथ जी ने कहा कि, “धर्म समाज में नैतिकता और अनुशासन का निर्माण करता है, जबकि अध्यात्म व्यक्ति को आंतरिक शांति और उद्देश्य की भावना प्रदान करता है। दोनों मिलकर समाज में सहयोग और सद्भावना को बढ़ावा देते हैं।”
परिषद का उद्देश्य और भावी कार्ययोजना
‘भारतीय संत महा परिषद’ के गठन का मुख्य उद्देश्य भारतीय संस्कृति और सनातन परंपराओं के संरक्षण, प्रचार-प्रसार, संत समाज को एकजुट करना, और राष्ट्र निर्माण में धर्माचार्यों की भूमिका को सशक्त करना है। परिषद के माध्यम से शिक्षा, नैतिकता, सेवा कार्य और शांति-सद्भाव के लिए विशेष कार्यक्रम चलाए जाएंगे।
आचार्य लोकेशजी को मिला यह सम्मान केवल उनके व्यक्तिगत योगदान का नहीं, बल्कि उस व्यापक अभियान का प्रतीक है, जिसमें भारत की आध्यात्मिक विरासत को पुनः स्थापित करने की दिशा में अनेक संत और संस्थाएँ जुटी हुई हैं। ‘भारतीय संत महा परिषद’ का गठन इस दिशा में एक मील का पत्थर साबित हो सकता है।