
क्षद्म कथावाचकों के साथ जो हुआ वो बहुत ही गलत है हम इसकी निंदा करते हैं परन्तु
उसने सिर्फ झूठ नहीं बोला, बल्कि फर्जी पहचान बनाई।
फर्जी आधार कार्ड में “अग्निहोत्री” बनकर कथा कहने लगे। ये सिर्फ ब्राह्मण बनना नहीं था, ये पूरी श्रद्धा और धर्म के साथ छल था।
लेकिन एक बात साफ़ है — हम उन सभी कथावाचकों को सम्मान देते हैं जो ईमानदारी से सनातन धर्म का प्रचार कर रहे हैं, चाहे वो कुशवाहा हों, यादव हों, सिंह हों या फिर कोई भी गैर-ब्राह्मण जाति से हों।
क्योंकि सनातन धर्म किसी एक जाति के बाप की बपौती नहीं है।
यह हर उस व्यक्ति का अधिकार है जो इस धर्म को मानता है, इसमें श्रद्धा रखता है, इसकी रक्षा करता है और इसकी महिमा फैलाता है।
जो लोग जाति बदलकर, फर्जी दस्तावेज़ बनाकर और झूठ बोलकर मंच पर चढ़ते हैं — वो न ब्राह्मण होते हैं, न सनातनी।
लेकिन जो सत्य, श्रद्धा और मर्यादा से कथा कहते हैं — वो किसी भी जाति से हों, पूज्यनीय हैं।
धर्म का प्रचार करने का अधिकार जाति नहीं, चरित्र तय करता है।
और धर्म का अपमान करने वाले को न जाति बचा सकती है, न झूठा नाम।
जो लोग समाज में जातिगत विद्वेष फैलाते हुए गलत शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं, उन्हें यह पूरी घटना पढ़नी चाहिए।
यह केवल दो लोगों की पहचान का मुद्दा नहीं है, बल्कि उस गहरी बीमारी का उदाहरण है जिसमें धर्म को धंधा और पहचान को पोशाक बना दिया गया है।
मुकुट मणि और संत राम ने केवल ब्राह्मण की नकली पहचान नहीं अपनाई, बल्कि उन्होंने धर्म के विश्वास को बेचने का काम किया।
संस्कृत न जानना, श्लोक गलत बोलना, और कथा के बीच अशोभनीय टिप्पणियाँ करना यह दिखाता है कि यह सब सनातन धर्म के प्रचार के नाम पर सिर्फ एक नाटक था।
जब पहचान की परख की गई तो उनके चेहरे उतर गए। जिस समाज ने उन्हें “पंडित” मानकर बुलाया था, वही समाज ठगा हुआ महसूस करने लगा।
अब कुछ लोग इसे जातिवाद कहकर असल मुद्दे से ध्यान भटकाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन सवाल जाति का नहीं है — सवाल है सत्य बनाम झूठ, श्रद्धा बनाम छल, और धर्म बनाम धंधा का।
अगर यही धोखा किसी यादव, कुशवाहा, जाट, राजपूत, या किसी भी समाज में हुआ होता तो वहां भी गुस्सा फूटता, क्योंकि कोई भी समाज अपने धार्मिक विश्वास के साथ धोखा बर्दाश्त नहीं करता।
अब यह मामला कानून के हवाले है और न्याय होना चाहिए — दोनों पक्षों पर।
जो कानून तोड़ें, वे जेल जाएं — चाहे वो फर्जी कथा वाचक हों या भीड़ बन कर सज़ा देने वाले।
लेकिन हमें यह याद रखना होगा कि अगर धर्म के नाम पर कोई ठगता है, तो उसे जाति की ढाल देकर बचाना और समाज को बांटना, उससे भी बड़ा अपराध है।
धर्म को जाति से ऊपर रखना होगा — क्योंकि धर्म सबका है, और धोखा किसी को भी मंज़ूर नहीं