
रेडियो पर इंदिरा गांधी की वो आवाज जिससे कांप उठा था पूरा हिन्दुस्तान 1975 !
Hightlights
नेहा द्विवेदी Desk
25 जून 1975 का वो खौफनाक दिन जिसको नहीं याद करना चाहती भारत की जनता
1975 में सत्ता की बलि चढ़े लोग
नशबंदी करवाया और पिटवाया ,छीनी गई उस वक्त प्रेस की स्वतंत्रता
आज 25 जून है कुछ याद आया की आज क्या है चलिए थोड़ा याद दिलाते है 25 जून 1975 भारत का काला दिन जब पुरे हिंदुस्तान को अपने मोह और सत्ता के लालच में बंद कर दिया गया था और इसके बाद ना जाने कितने लोगों को कितने समाज सेवियों को जेल में भर के मारा गया था लोकतंत्र की आवाज को निर्ममता से कुचल दिया गया था एक दौर भारत ने ये भी देखा है जो आजादी से पहले लोगों ने देखा था खैर वोतो अपने नहीं थे लेकिन 1975 में जो हुआ वो अपने ही देश के थे जिन्होंने हिंदुस्तान के लोगों की जुबान बंद करने के लिए सब कुछ शील कर दिया था ….. आज साल 1975 में लागू किए गए आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ है इसपर ही बात करेंगे आज हम कहते है कोई कितना भी पॉवरफुल इज़्ज़दार हो लेकिन अगर उसके हाथ से एक गलत काम हो जाए तो जिंदगी भर के लिए वो नासूर हो जाता है और भूले नहीं भूलता भारत में 21 महीने का भी उस दौर का ऐसा काला सच है जिससे अभी तक भारत की जनता बाहर नहीं आ पाई है आपातकाल 50 साल पहले 25 जून 1975 को लगाया गया था। इंदिरा गांधी ने पूरे भारत में ‘आपातकाल’ लगाया, जिससे हमारे लोकतंत्र में सबसे काले दौर में से एक आया। और दिन देश के लोगों को पता चला की सत्ता की कुर्सी और उसका मोह कितनी बड़ी है आपातकाल ने देश की राजनीतिक और सामाजिक स्थिति को गहराई से प्रभावित किया। इस दौरान, नागरिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया, प्रेस की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाया गया और विपक्षी नेताओं को बड़े पैमाने पर गिरफ्तार किया गया।आपातकाल के दौरान, सरकार ने कई कठोर कदम उठाए, जिनमें सेंसरशिप, हिरासत और जबरन नसबंदी कार्यक्रम शामिल थे। इन उपायों का उद्देश्य सरकार को अधिक नियंत्रण देना था, लेकिन इसके परिणामस्वरूप व्यापक असंतोष और विरोध हुआ। आपातकाल का अंत 1977 में हुआ जब इंदिरा गांधी ने आम चुनाव कराने का फैसला किया। आपातकाल के दौरान उत्पीड़न और असंतोष के कारण कांग्रेस पार्टी को हार का सामना करना पड़ा और जनता पार्टी की सरकार बनी।आपातकाल की यह घटना भारतीय लोकतंत्र के लिए एक महत्वपूर्ण सबक है, जो नागरिक अधिकारों, प्रेस की स्वतंत्रता और न्यायपालिका की भूमिका के महत्व को रेखांकित करती है। यादें तब ताजा हो गई जब पीएम मोदी ने एक किताब लिखी द इमरजेंसी डायरीज’ पीएम मोदी उस दौर को अपने लिए बड़ा सीखने का अनुभव बताया। उन्होंने कहा कि आपातकाल के समय वह आरएसएस के युवा प्रचारक थे और लोकतंत्र की रक्षा के लिए चलाए आंदोलन ने उन्हें काफी सिखाया