
पटना: बिहार में विधानसभा चुनावों की आहट के साथ ही सियासी हलचलें तेज हो गई हैं।
पटना: बिहार में विधानसभा चुनावों की आहट के साथ ही सियासी हलचलें तेज हो गई हैं। इस बार चुनाव से पहले एक ऐसा कदम उठाया गया है, जिसने राजनीतिक गलियारों में नई बहस छेड़ दी है। चुनाव आयोग ने बिहार में 2003 के बाद पहली बार एक विशेष और गहन मतदाता सूची संशोधन अभियान (Intensive Revision Drive) शुरू किया है। यह निर्णय ऐसे समय पर लिया गया है जब राज्य में चुनाव कुछ ही महीनों में होने वाले हैं। चुनाव आयोग के इस कदम को लेकर कई राजनीतिक दलों और विश्लेषकों की चिंताएं सामने आ रही हैं। इस संदर्भ में जनसुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर ने आजतक से बातचीत में कहा कि यह कदम संदेह के घेरे में है और इसकी पारदर्शिता पर सवाल उठते हैं। इस तरह का इंटेंसिव रिविजन आमतौर पर चुनाव के एक साल या उससे ज्यादा पहले किया जाता है, लेकिन बिहार में इसे चुनाव के सिर्फ दो-तीन महीने पहले शुरू करना संदेह पैदा करता है। महाराष्ट्र और हरियाणा में भी चुनाव से पहले ऐसा हुआ था और वहाँ मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने इसे लेकर गंभीर आरोप लगाए थे।” प्रशांत किशोर ने कहा कि यह जरूरी है कि चुनाव आयोग जनता के सामने इस अभियान की प्रक्रिया और उसकी निष्पक्षता को लेकर पूरी तरह पारदर्शी हो। साथ ही यह भी स्पष्ट करे कि इससे किसी भी विशेष समुदाय, पार्टी या वोट बैंक को प्रभावित नहीं किया जाएगा “ये अभियान अगर लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए है, तो सभी स्टेकहोल्डर्स को भरोसे में लिया जाए। कहीं ऐसा न हो कि मतदाता सूची में फेरबदल किसी के पक्ष या विपक्ष में हो जाए। अगर संशोधन जरूरी है, तो उसे पूरी पारदर्शिता और निष्पक्षता के साथ किया जाए।”पटना में हाल ही में तेजस्वी यादव द्वारा आयोजित छात्र संसद का जिक्र करते हुए, प्रशांत किशोर ने उस कार्यक्रम पर भी तीखी प्रतिक्रिया दी जिसमें तेजस्वी ने हजारों छात्रों को ‘कलम’ भेंट की थी और शिक्षा सुधार का वादा किया था। “लोकतंत्र में सभी को अपनी बात कहने का अधिकार है, लेकिन जब तेजस्वी यादव शिक्षा की बात करते हैं, तो बिहार की जनता को यह याद रखना चाहिए कि उनके माता-पिता की सरकार 15 साल रही (1990–2005), और उस दौर में शिक्षा व्यवस्था को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा। उन्होंने यह भी जोड़ा कि तेजस्वी खुद तीन साल तक बिहार के उपमुख्यमंत्री रहे, और उस दौरान शिक्षा विभाग आरजेडी के ही पास था। बावजूद इसके, राज्य में शिक्षा व्यवस्था में कोई ठोस बदलाव नहीं आया।
“आप सिर्फ कलम बांटकर या कार्यक्रम कराकर छात्रों को प्रभावित नहीं कर सकते। अगर बांटना ही है तो शिक्षा, ज्ञान और रोजगार बांटिए। कलम, मिठाई, साड़ी, शराब और पैसे बांटकर वोट लेना, ये बिहार की राजनीति का दुखद चेहरा बन गया है। इसे बदलना होगा।”बिहार में जैसे-जैसे चुनाव करीब आ रहे हैं, राजनीतिक दलों की गतिविधियाँ और बयानबाज़ी तेज होती जा रही है। प्रशांत किशोर की बेबाक टिप्पणी और चुनाव आयोग की नई रणनीति आने वाले दिनों में एक बड़ा सियासी मुद्दा बन सकती है। अब देखना यह होगा कि आयोग इन आरोपों और संदेहों पर किस तरह प्रतिक्रिया देता है और क्या बिहार की जनता सचमुच “कलम” और “वादों” से प्रभावित होती है या हकीकत को पहचानती है।