
महाराष्ट्र में नहीं आयेगी हिंदी की शिक्षा, राज ठाकरे उद्धव ठाकरे खुलकर आए सामने ?
Hightlights
हिन्दुस्तान के चंद राज्यों में हिंदी का विरोध जोरों पर
राज ठाकरे उद्धव ठाकरे खुलकर आए सामने
महाराष्ट्र में नहीं आयेगी हिंदी की शिक्षा – उद्धव और राज
तमिल नाडु में भी हुआ था हिंदी का विरोध
आखिर ये राज्य क्यों छीन रहे है हिन्दुतान की पहचान
राष्ट्र भाषा हिंदी का गैर हिंदी राज्यों में विरोध
वैसे तो हिंदुस्तान की पोलिटिकल पार्टियां चुनाव आते ही जैसा देश भेष वैसा भेष कर लेती हैं लेकिन इनको अलगाववाद की ऐसी लत लगी है की अब भाषा भी इनको अपनी अलग ही चाहिए। हिंदुस्तान में इंग्लिश जैसे भाषा को तवज्जो दी जाती है जिस देश में संस्कृत बोलने पढ़ने की परम्परा रही हो उस देश में आज हिंदी का विरोध हो रहा है। …..हिंदी है तो हिंदुस्तान है हिंदी से हिंदुस्तान का गुरुर है लेकिन भैया ये भारत के दो राज्य इतना हिंदी ऐसे परेशान क्यों है भारत की एक मात्रा भाषा जिससे हिंदुस्तान की पहचान होती है वो आखिर भारत के दो राज्यों में विरोध का सामना क्यों कर रही है क्या ये सवाल आपके जहन मे नहीं आता की देश एक लोग एक भाषा एक फिर सोच अलग कैसे,,,,इंट्रो ,,,,,,,,,,,
दरअसल कुछ दिनों से एक खबर सामने आ रही है की महारष्ट्र में राज्य सरकार ने हिंदी भाषा को लाने के लिए एक प्रस्ताव रखा था , जिसमे कहा गया था की 1 क्लास से 5वीं तक हिंदी विषय को पढ़ाया जाएगा और बच्चों को हिंदी के लिए उनको जागरूक किया जाएगा ताकि बच्चें हिंदी का भी महत्व समझ सकें लेकिन अचानक से थ्री लैंग्वेज पॉलिसी का विरोध होने लगा और करने वाले भी हिंदुस्तान के ही जाने माने चेहरे है महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना पार्टी के मुखिया राज ठाकरे और उनके भाई और ubt के मुखिया उद्धव ठाकरे दोनों भाइयों की मराठी भक्ति जगी और अचानक से हिंदी भाषा को लेकर 5 जुलाई को राज्य सरकार के खिलाफ आंदोलन करने की धमकी दे दिए..आपको बता दें की महाराष्ट्र पहला राज्य नहीं है जहाँ हिंदी का विरोध हुआ है बल्कि इससे पहले भी थ्री लैंग्वेज पॉलिसी को लेकर तमिलनाडु में बवाल और विरोध हो चूका है तमिलनाडु सरकार ने इसे लागू करने से ही इनकार करते हुए केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया,,,, दक्षिण से लेकर पश्चिम तक थ्री लैंग्वेज पॉलिसी सियासत का शिकार हो रही है. दरअसल, सरकार ने नई शिक्षा नीति 2020 में थ्री लैंग्वेज पॉलिसी जरूरी बदलाव के साथ लागू करने का फैसला लिया. इस पॉलिसी में अंग्रेजी को विदेशी भाषा की श्रेणी में रखा गया है. अंग्रेजी भाषा ज्यादातर राज्यों के ज्यादातर स्कूलों में पहले से ही पढ़ाई जा रही है हीं, अब महाराष्ट्र सरकार को इसे लागू करने का आदेश जारी कर उसे वापस लेना पड़ा सवाल है कि थ्री लैंग्वेज पॉलिसी राज्य दर राज्य सियासत की शिकार क्यों हो रही है? सोचने वाली बात हैं हिंदी को ऑप्शन में और अंग्रेजी को तवज्जो दी जा रही है सिर्फ राजनीतिक लोभ के लिए इंसान कितना नीचे आ सकता है साफ़ तौर पर इन दोनों में राज्यों में दिख रहा है….. अब चलिए कुछ इनके so cold मूल सिद्धांतों की बात कर लेते है….. आप खुद सोचिये की आखिर ये चलिए पहले तमिलनाडु की बात करते है जब भी कोई मूवी निकलती है ये हिंदी में भी डब करते है और हिंदी भाषी राज्यों में भी ब्रॉडकास्ट करवाते है लेकिन विरोध भी उसका ही करते है खैर बिना स्वार्थ के तो इश्वर से भी रिश्ता नहीं रखता इन्सान, इक्कीस रुपये के प्रसाद में पूरी दुनिया की लालसा रखता है, और वो भी चढ़ाएगा काम पूरा होने के बाद !! ये तो फिर भी देश की राष्ट्र भाषा है जब गैर हिंदी राज्य के बच्चे हिंदी राज्य में उच्च पढाई की शिक्षा लेने आते है तब कितनी दिक्कत होती है उनको ये इस सत्ता लोभी लोगों को क्या पता महारष्ट्र तमिल बंगाल कुछ तमाम ऐसे राज्य है जो हिंदी का विरोध करते है लेकिन कोई भी फिल्म अगर आती है तो उसको हिंदी में भी लगाना है ये उनके लिए जरूरी है थ्री लैंग्वेज पॉलिसी के विरोध के पीछे भी राज्यों की, राजनीतिक दलों की अपनी वजहें हैं. केंद्र सरकार ने नई शिक्षा नीति में थ्री-लैंग्वेज पॉलिसी संशोधन के पीछे इस फॉर्मूले में ज्यादा लचीलेपन का तर्क दिया था. तब कहा गया था कि किसी भी राज्य पर कोई भी भाषा थोपी नहीं जाएगी. छात्र कौन सी तीन भाषाएं सीखेंगे, यह राज्य सरकारें खुद तय करेंगी. इस प्रावधान में राज्यों को आजादी तो दी गई है, लेकिन एक शर्त यह भी जोड़ दी गई है कि तीन में कम से कम दो भाषाएं भारत की मूल भाषाओं में से हों.इस देश का दुर्भाग्य कह लें या विद्यार्थियों की किस्मत की अब पोलिटिकल लीडर तय करेंगे की बच्चा कोनसी भाषा बोलेगा और कोनसी भाषा सीखेगा सिर्फ अपने वोट बैंक को साधने के लिए किसी बच्चे को हिंदी के ज्ञान से वंचित कर देना इस तरह की राजनीति को किसी भी एंगल से विकास का नाम नहीं दिया जा सकता