
आज का भारत 1975 वाला नहीं
हमें उम्मीद थी की दुनिया गाली देगी मुझे लेकिन तुम तो अपने थे ये कैसे कर दिया शशि थरूर के बीजेपी में शामिल होने के कयासों ने इस बात को पुख्ता कर दिया जब उन्होंने 1975 में हुए आपातकाल का विरोध किया और ना सिर्फ विरोध किया बल्कि इसकी बहुत निंदा की उन्होंने कहा की उस वक्त असहमति को बेरहमी से दबाया गया था लेकिन आज का भारत 1975 का भारत नहीं है। दरअसल उन्होंने शशि थरूर ने एक आर्टिकल लिखा है आपातकाल पर जिसमे उन्होंने आपातकाल को कला दिवस बताया है पुरे देश के लिए ऑपरेशन सिंदूर के लिए सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा बनने के बाद से ही कांग्रेस सांसद शशि थरूर सुर्खियों में बने हुए हैं. इस दौरान साल 1975 में वर्तमान प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के शासन में लगी आपातकाल को लेकर उन्होंने उस वक्त के हालात और अपने विचार सामने रखे हैं. उन्होंने अपने इस आर्टिकल में कहा कि आज का भारत 1975 वाला नहीं है.बहुत आगे बढ़ चूका है देखिये कांग्रेस के लिए ये मुद्दा बड़ा पेचीदा और उल्टा रहा है किसी के सामने बात करने पर भी कम्फ़र्टेबल नहीं होती है कांग्रेस सांसद और वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने 1975 में लगे आपातकाल को लेकर एक बार फिर अपनी ही पार्टी की उस ऐतिहासिक गलती पर तीखी टिप्पणी की है। थरूर ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व ट्विटर) पर एक लंबा पोस्ट लिखते हुए कहा कि “आज का भारत 1975 वाला भारत नहीं है, लेकिन हमें इतिहास से सबक लेना चाहिए।” उन्होंने लिखा कि उस समय सरकार ने लोकतंत्र की आत्मा को चोट पहुंचाई और असहमति की आवाजों को बेरहमी से कुचला गया।
थरूर ने लिखा, “आपातकाल में प्रेस की आज़ादी छीन ली गई थी, विपक्षी नेताओं को जेल में डाल दिया गया था, और नागरिक अधिकारों का गला घोंटा गया था। यह भारतीय लोकतंत्र के इतिहास का सबसे अंधकारमय समय था।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि आज जबकि भारत लोकतंत्र के 75 साल पार कर चुका है, हमें हर उस कदम से सावधान रहना चाहिए जो किसी भी रूप में आपातकाल जैसी स्थिति को दोहराए। यह बयान ऐसे समय आया है जब देश भर में विपक्षी दल इमरजेंसी की बरसी (25 जून) के आस-पास विभिन्न कार्यक्रमों और बहसों के माध्यम से अपनी-अपनी राजनीतिक लाइन स्पष्ट कर रहे हैं। बीजेपी जहां कांग्रेस पर इमरजेंसी के लिए लगातार हमलावर रहती है, वहीं कांग्रेस के भीतर से ही थरूर जैसे नेताओं की आलोचना पार्टी की आत्ममंथन की जरूरत को दर्शाती है।
शशि थरूर पहले भी कई बार इमरजेंसी की आलोचना कर चुके हैं, लेकिन इस बार उनके शब्द और तीखे हैं। उन्होंने अपने पोस्ट में लिखा, “लोकतंत्र केवल चुनाव जितने का नाम नहीं है, यह लोगों की आवाज को सुनने, असहमति को स्वीकारने और संविधान का सम्मान करने का नाम है।”
थरूर के इस बयान के बाद राजनीतिक हलकों में चर्चा तेज हो गई है। कुछ भाजपा नेताओं ने इसे कांग्रेस में अंतर्निहित मतभेदों का संकेत बताया है, वहीं कांग्रेस के कई समर्थकों ने थरूर की साफगोई की तारीफ भी की है।