
तेजस्वी यादव का डर आया सामने उन्होंने बीजेपी पर लगाए ये इलज़ाम ?
क्या सच में चुनावी परिणाम प्रभावित हो सकते हैं
लोकतंत्र की विश्वसनीयता पर सवाल भी कई उठेंगे
SIR प्रक्रिया में किसी भी स्तर की गड़बड़ी या गैर पारदर्शिता नहीं
ओटीपी या मोबाइल लिंकिंग जैसे चरणों में गड़बड़ियां हो रही हैं
बिहार में इस वक्त जैसे जैसे बिहार विधान सभा चुनाव नजदीक आ रहा है वैसे वैसे सियासी भूचाल भी थमने का नाम नहीं ले रहा है एक के एक बाद एक मुद्दे बिहार में चुनावी महल को चुनौती दे रहें है पक्ष हो या विपक्ष एक दूसरे को पीछे करने के लिए कोई भी गलती नहीं करना चाहते है। लेकिन बात आखिर कार वहां बिगड़ रही है जहां बात sir की आ जाती है जी हां अब इस बात को लेकर नेता प्रतिपक्ष शुरू से तेजस्वी यादव शुरू से ही डरे हुए है और बयान बाजी कर रहें है। इसके विरोध में बोलने स चूक नहीं रहें है। अब तेजस्वी यादव बिहार में 1% वोट को लेकर चिंता में है आइये बताते है कैसे दरअसल बिहार में चल रहे वोटर वेरिफिकेशन को तेजस्वी यादव पूरी तरह से नकारते हुए इसको दिखावा बताया है तेजस्वी यादव ने एसआईआर को महज दिखावा करार देते हुए इसे वोटर लिस्ट से नाम हटाने की संगठित साजिश बताया है अब तेजस्वी को एक बात का भय सता रहा है की कहीं अगर वोट कटा तो काफी नुकशान होगा तेजस्वी यादव और विपक्षी दलों की ओर से एसआईआर (Special Summary Revision – विशेष संक्षिप्त पुनरीक्षण) प्रक्रिया को लेकर जो चिंता जताई जा रही है, उसके पीछे कई ठोस वजहें हैं — खासकर मतदाता सूची से नाम कटने का डर। चुनाव आयोग ने दावा किया है कि 80% से अधिक मतदाताओं ने आवश्यक फॉर्म भर दिए हैं, लेकिन तेजस्वी यादव का सवाल है कि:लेकिन सवाल तेजस्वी यादव का ये है की कितने फॉर्म सत्यापित है यदि कोई व्यक्ति ने फॉर्म तो भर दिया हो लेकिन उसका दस्तावेज अधूरा या अमान्य हो, तो उसका नाम सूची से कट सकता है। एक फीसदी वोटर भी छूटे तो बड़ा असर
तेजस्वी ने कहा कि अगर महज 1% वोटर भी छूट जाते हैं, तो
हर विधानसभा क्षेत्र में औसतन 3251 वोटर प्रभावित होंगे।
बिहार की 243 विधानसभा सीटों के हिसाब से ये करीब 8 लाख वोटर्स होंगे।
इतने वोटों से तीन दर्जन (36) से अधिक सीटों पर परिणाम बदल सकते हैं, खासकर जहां जीत-हार का अंतर बहुत कम होता है।
विपक्ष का आरोप है कि यह प्रक्रिया जानबूझकर ऐसी रखी गई है जिसमें:
कम जानकारी वाले, गरीब, ग्रामीण या वंचित वर्ग के वोट काटे जा सकते हैं।
नए या कमजोर दस्तावेजों के कारण वोटरों के नाम हटाने में आसानी हो सकती है।
डिजिटल गड़बड़ियों या प्रक्रिया की जटिलता का फायदा उठाकर विरोधी दलों के समर्थकों को वोटिंग से रोका जा सकता है।
वोटर लिस्ट को आधार से लिंक करने की प्रक्रिया में भी पारदर्शिता को लेकर सवाल उठते रहे हैं।
विपक्ष का कहना है कि इसमें बायोमेट्रिक वेरिफिकेशन, ओटीपी या मोबाइल लिंकिंग जैसे चरणों में गड़बड़ियां हो रही हैं, जिससे निर्दोष लोगों के नाम हट सकते हैं। एसआईआर प्रक्रिया में किसी भी स्तर की गड़बड़ी या गैर-पारदर्शिता से:
जनता का विश्वास टूटेगा,
लोकतंत्र की विश्वसनीयता पर सवाल उठेंगे, और
चुनावी परिणाम प्रभावित हो सकते हैं, खासकर उन क्षेत्रों में जहां मुकाबला करीबी होता है।