
15 जुलाई 2025
भारतीय वैज्ञानिक शुभांशु शुक्ला समेत अंतरराष्ट्रीय क्रू को लेकर स्पेसX का ड्रैगन कैप्सूल सफलतापूर्वक धरती पर लौट आया। यह कैप्सूल कैलिफोर्निया के तट के पास प्रशांत महासागर में उतरा। इस मिशन की वापसी को लेकर पूरी दुनिया की नजरें टिकी थीं, क्योंकि इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) से धरती पर सुरक्षित लौटना एक बेहद जटिल और सटीक वैज्ञानिक प्रक्रिया होती है।ISS की रफ्तार 28 हजार किमी/घंटा, हर सेकंड मायने रखता है
ISS पृथ्वी की कक्षा में 28,000 किमी/घंटे की रफ्तार से घूमता है। इतनी तेज रफ्तार पर किसी भी मिशन की टाइमिंग में एक पल की भी देरी से पूरा कैलकुलेशन बिगड़ सकता है। इसलिए वैज्ञानिक पहले ही यह गणना करते हैं कि किस समय पर स्टेशन कहां होगा और वापसी कब शुरू होनी चाहिए।
NASA के मुताबिक, वापसी से पहले दो अहम स्टेप्स होते हैं:
Entry Burn – जिससे यान धीरे-धीरे पृथ्वी के वातावरण की ओर बढ़ने लगता है।
De-Orbit Burn – आखिरी पुश, जो कैप्सूल को धरती की दिशा में छोड़ता है।
इन स्टेप्स के समय और दिशा में जरा सी भी चूक होने पर लैंडिंग साइट सैकड़ों किलोमीटर तक बदल सकती है। इसलिए मिशन में एक प्राइमरी और एक बैकअप लैंडिंग साइट तय की जाती है। कैप्सूल का ‘एंट्री एंगल’ होता है सबसे क्रिटिकल
जब कोई स्पेस कैप्सूल धरती के वातावरण में एंटर करता है, तो उसे एक सटीक “एंट्री एंगल” में होना जरूरी होता है। अगर यह कोण:
बहुत कम हुआ — तो कैप्सूल वातावरण को छूकर फिर से अंतरिक्ष में चला जाएगा।
बहुत ज्यादा हुआ — तो वायुमंडल की गर्मी और घर्षण से कैप्सूल जल सकता है या नष्ट हो सकता है।
इसलिए इसे गुरुत्वाकर्षण और वायुमंडलीय घर्षण से संतुलित रखा जाता है, ताकि यात्री सुरक्षित लौट सकें समुद्र: सबसे सुरक्षित लैंडिंग ज़ोन क्यों?
इस मिशन में प्रशांत महासागर को लैंडिंग साइट के रूप में चुना गया, और इसके पीछे ठोस वैज्ञानिक कारण हैं:
खुला और निर्जन क्षेत्र: समुद्र में उतरने से लोगों या इमारतों को कोई खतरा नहीं होता।
कम झटका: पानी की सतह ठोस जमीन के मुकाबले कैप्सूल को कम झटका देती है।
रिजर्व स्पेस: समुद्र में हजारों किलोमीटर तक खाली जगह होती है — जिससे कैप्सूल की दिशा या टाइमिंग थोड़ा इधर-उधर हो तो भी लैंडिंग संभव है।
रेस्क्यू टीम की तैनाती: मिशन से पहले से ही वहां नौकाएं और हेलीकॉप्टर तैयार रखे जाते हैं, जो कैप्सूल और अंतरिक्ष यात्रियों को तुरंत रेस्क्यू कर लेते हैं।
शुभांशु शुक्ला की यह वापसी न केवल भारत के लिए गौरव का क्षण है, बल्कि यह इस बात का भी उदाहरण है कि अंतरिक्ष मिशनों में हर सेकंड, हर गणना और हर कोण की अहम भूमिका होती है। वैज्ञानिकों की योजना, सटीकता और तकनीकी कौशल ही इन अभियानों को सफल बनाते हैं।
शुभांशु शुक्ला की धरती पर वापसी एक और सफल अंतरिक्ष मिशन का प्रतीक है। ISS से इतनी तेज रफ्तार में घूमती पृथ्वी से लौटना तकनीकी रूप से चुनौतीपूर्ण होता है, लेकिन वैज्ञानिकों की महीनों की मेहनत और सटीक प्लानिंग ही इसे मुमकिन बनाती है। समुद्र, आज भी अंतरिक्ष मिशनों की वापसी के लिए सबसे सुरक्षित और भरोसेमंद स्थल बना हुआ है।