
ब्रिटिश कोलंबिया विधानसभाध्यक्ष एवं भारत के कॉन्सुल जनरल ने किया पूजा-अर्चना में सहभाग
वैंकूवर कनाडा 15 जुलाई। में आज का दिन जैन समाज और भारतीय संस्कृति के लिए अत्यंत गौरवपूर्ण रहा, जब पूज्य आचार्यश्री डॉ. लोकेश मुनिजी की पावन उपस्थिति में एक भव्य 24 तीर्थंकर पूजा एवं आरती का आयोजन संपन्न हुआ। इस पवित्र अवसर पर ब्रिटिश कोलंबिया के विधानसभाध्यक्ष और भारत के कॉन्सुल जनरल ऑफ इंडिया (वैंकूवर) ने भी भाग लेकर आयोजन की गरिमा को और बढ़ाया।
पूज्य आचार्यश्री के सान्निध्य में आयोजित यह कार्यक्रम जैनधर्म की शिक्षाओं को वैश्विक स्तर पर प्रोत्साहित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम रहा। कार्यक्रम में कनाडा स्थित भारतीय समुदाय सहित विभिन्न राष्ट्रीयताओं के नागरिकों ने भी उत्साहपूर्वक भाग लिया।
धार्मिक गरिमा और आध्यात्मिकता का संगम
आचार्यश्री ने अपने संबोधन में कहा कि जैन धर्म केवल धार्मिक पंथ नहीं, बल्कि मानवता के लिए एक वैज्ञानिक, शाश्वत और व्यावहारिक जीवनपद्धति है। उन्होंने बताया कि 24 तीर्थंकरों की पूजा आत्मशुद्धि, अहिंसा और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है।
उन्होंने कहा कि आज का युग वैश्विक शांति और अंतरधार्मिक समन्वय की माँग करता है, और जैन दर्शन इस दिशा में एक शाश्वत समाधान प्रस्तुत करता है। आचार्यश्री के प्रवचन ने उपस्थित जनसमुदाय को गहराई से प्रभावित किया।
उपस्थित विशिष्ट अतिथियों की सराहना
ब्रिटिश कोलंबिया विधानसभाध्यक्ष ने इस आयोजन की सराहना करते हुए कहा कि भारत की आध्यात्मिक परंपराएं विश्व के लिए प्रेरणास्रोत हैं। उन्होंने जैन धर्म की अहिंसा आधारित जीवनशैली को आज की दुनिया के लिए अत्यंत प्रासंगिक बताया।
भारत के कॉन्सुल जनरल ने भी आचार्यश्री की अध्यात्मिक सेवाओं की प्रशंसा करते हुए कहा कि उनका कार्य न केवल भारतीय संस्कृति का प्रचार है, बल्कि वैश्विक मानवता के कल्याण का प्रयास भी है।
संस्कृति और आस्था का अनूठा संगम
इस अवसर पर वैंकूवर के जैन समुदाय ने विशेष आरती, मंत्रोच्चारण, और सांस्कृतिक प्रस्तुतियों के माध्यम से अपनी आस्था प्रकट की। बच्चों एवं युवाओं ने भी जैन धर्म से जुड़े सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेकर आयोजन को जीवंत बना दिया।
पूरे आयोजन को एक आध्यात्मिक उत्सव के रूप में देखा गया, जिसमें सभी वर्गों और आयु समूहों के लोगों ने एक साथ मिलकर भाग लिया। यह कार्यक्रम भारतीय मूल्यों, संस्कृति और जैन धर्म की वैश्विक प्रासंगिकता का उत्कृष्ट उदाहरण बन गया।
विश्वशांति का संदेश
कार्यक्रम के अंत में आचार्यश्री लोकेश मुनिजी ने विश्व में शांति, सहिष्णुता और अहिंसा के प्रसार का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि “यदि मानवता को बचाना है, तो अहिंसा और करुणा के मार्ग को अपनाना होगा। जैन धर्म उसी पथ का प्रकाश स्तंभ है।