
विपक्ष ने कहा SIR है वोट काटू जुमला ?
बिहार में चुनावी पारा हाई विपक्ष के बीच विरोध
SIR गरीब दलित मुस्लमान का वोट काटने की साजिश
बिहार में मतदाता सूची पर सियासी घमासान
विपक्ष ने लगाए भेदभाव के आरोप, चुनाव आयोग ने दी सफाई
पटना। बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) को लेकर सियासी घमासान मच गया है। विपक्षी दलों ने इस प्रक्रिया को लेकर गंभीर सवाल उठाए हैं और आरोप लगाया है कि यह गरीब, दलित, मुस्लिम और प्रवासी वर्गों को लक्षित कर उनके नाम मतदाता सूची से हटाने की साजिश है। वहीं, चुनाव आयोग ने इन आरोपों को बेबुनियाद बताते हुए कहा है कि यह प्रक्रिया पूरी तरह संवैधानिक है और इसका उद्देश्य केवल फर्जी और दोहरी प्रविष्टियों को हटाना है। लेकिन इन सारी प्रक्रिया के तहत आखिर sir का मुद्दा क्यों गरमाया हुआ है आइये जानते है की क्या है sir दरअसल सबसे पहले ये समझ लेते हैं कि स्पेशल इंटेसिव रिवीजन होता क्या है? दरअसल, इसके तहत चुनाव आयोग का काम मतदाता सूची को अपडेट करना होता है। इसमें अगर किसी व्यक्ति का निधन हो गया है, किसी का क्षेत्र बदल गया है आदि तो ऐसे शख्स का नाम मतदाता सूची से हटा दिया जाता है। जबकि, अगर कोई 18 वर्ष का हो गया है तो उसका नाम वोटर लिस्ट से जोड़ दिया जाता है। राजद, कांग्रेस और वाम दलों सहित कई विपक्षी पार्टियों का आरोप है कि इस पुनरीक्षण अभियान का असली मकसद एक खास वर्ग के मतदाताओं को चुनावी प्रक्रिया से बाहर करना है। उनका कहना है कि यह प्रक्रिया गरीब, दलित, मुसलमान और प्रवासी मजदूरों के नाम हटाकर सामाजिक न्याय की अवधारणा को कमजोर करने का प्रयास है।
राजद नेता तेजस्वी यादव ने कहा, “चुनाव आयोग की आड़ में सत्ता पक्ष गरीबों, मुसलमानों और पिछड़ों के वोट काटने की साजिश कर रहा है। यह लोकतंत्र पर सीधा हमला है और हम इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे।” कांग्रेस नेताओं ने भी इस मामले को लेकर राज्यपाल से मिलने की बात कही है और पूरे राज्य में विरोध प्रदर्शन की चेतावनी दी है। वहीं, चुनाव आयोग ने विपक्ष के आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि यह विशेष पुनरीक्षण अभियान पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के तहत चलाया जा रहा है, जिसका उद्देश्य मतदाता सूची को शुद्ध करना है। आयोग का कहना है कि कई स्थानों पर एक ही व्यक्ति के नाम दो-दो जगह पंजीकृत हैं, जिससे फर्जी मतदान की आशंका बढ़ जाती है। बिहार के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी के कार्यालय से जारी बयान में कहा गया है, “यह एक नियमित प्रक्रिया है जो हर चुनाव से पहले होती है। इसमें किसी वर्ग विशेष को निशाना नहीं बनाया जा रहा। अगर किसी व्यक्ति को लगता है कि उसका नाम गलत तरीके से हटाया गया है, तो वह संबंधित बीएलओ या निर्वाचन अधिकारी से संपर्क कर सकता है।” विपक्ष का यह भी दावा है कि इस प्रक्रिया में सबसे ज्यादा नुकसान प्रवासी मजदूरों और मुस्लिम मतदाताओं को हो रहा है। कई स्थानों पर यह देखने को मिला है कि बीएलओ ने घर पर संपर्क किए बिना ही नाम काट दिए। कई गरीब और असाक्षर मतदाताओं को यह भी नहीं पता कि उनका नाम सूची से हटा दिया गया है। कुछ नागरिक संगठनों ने भी इस प्रक्रिया की निगरानी की मांग की है। उनका कहना है कि यदि यह प्रक्रिया पारदर्शी और निष्पक्ष नहीं रही, तो इससे लोगों का चुनावी प्रणाली से विश्वास उठ जाएगा। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह मुद्दा आगामी विधानसभा चुनावों से पहले बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन सकता है। विपक्ष इसे सत्ता पक्ष की चाल बताकर जनता के बीच जा रहा है, जबकि सरकार और निर्वाचन आयोग इसे प्रशासनिक प्रक्रिया बता रहे हैं। इस पूरे विवाद ने बिहार की राजनीति में एक नई बहस को जन्म दे दिया है। अब आपको बता दें की बिहार में मतदाता सूची का विशेष पुनरीक्षण एक आम प्रशासनिक प्रक्रिया है, लेकिन इसके निष्पादन में आ रही शिकायतों ने इसे सियासी रंग दे दिया है। अब देखना होगा कि चुनाव आयोग पारदर्शिता और निष्पक्षता के दावे को जमीन पर कितना उतार पाता है और क्या विपक्ष इस मुद्दे को जन आंदोलन का रूप देने में सफल होता है।